Thursday, January 27, 2011

कला

संस्कृति की संवाहक
मानवीय एवं रसात्मक
मैं कला हूँ
भारतीय कला
ललित कला
कहीं एक हूँ
तो कहीं अनेक
शास्त्रों में
साहित्य में
वाङ्मय में
श्रुतियों और
स्मृतियों में
मैं चौंसठ रूपों में
व्याप्त हूँ
मैं कला हूँ
भारतीय कला
चित्रकला
ललितकला
और हस्तकला
मेरी वक्रता
आनन्द और आस्वाद में
मुखरित होती है
कैलाश से लेकर
बृहदेश्वर तक
प्रतिबिम्बित होती है।
मैं ही लेखक की लेखनी हूँ
चित्रकार की तूलिका
मूर्तिकार की साधना
और............
नर्तक-गायक की आराधना।