Saturday, April 14, 2018

इमारतें :तुहिन हरित

इन पुरानी जर्जर इमारतों में कौन रहता होगा
प्यार से डाँटते हुए, "अब सो जाओ" कौन कहता होगा

इन बूढ़ी दीवारों पर बरस स्याही छोड़ गये हैं
नजाने कितने तूफ़ान टकराके मुँह मोड़ गये हैं

बारिशें इन जंगी सलाखों को चूमकर पीती होंगी,
कूछ मासूम हाथों में रुकती होंगी, कुछ थके दिलों में जीती होंगी

इस टूटी दहलीज़ पर कुछ ख्वाहिशों ने दम तोड़ा होगा
उस खिड़की के आगे कुछ ख्वाबों ने ज़मीन को छोड़ा होगा

मौसमों की तरह, कभी शाम तो कभी पहर होगा
इन पुरानी जर्जर इमारतो में किसी का शहर होगा 

Tuesday, April 10, 2018

अमित मिश्र

सुनो ना आजकल सब चाय के बारे में लिख रहे हैं..
मैं भी लिख दूं क्या?
अपनी वो चाय और वो बातें ..याद है तुम्हे ..
मेरा  अचानक  तुम्हे चाय  पे बुलाना
तुम्हारा  घर  पे  नया  बहाना बनाना
चोरी चोरी पीछे वाली गली से आना
गुस्से में मुझे खूब खरी खोटी सुनाना
मेरा बस तुम्हे देखना और मुस्कराना
और तुम्हारा वो झट से पिघल जाना
और हमारी चाय पे चर्चा शुरू हो जाना...
अच्छा वो याद है क्या तुम्हे...............
कभी  चाय  में चीनी  ज्यादा हो  जाना
फिर तुम्हारा उसमे और दूध मिलवाना
कभी वो अदरक का टुकड़ा  रह जाना
और  तुम्हारा  एकदम  से उछल जाना
तुम्हारा  उस  चाय  वाले से लड़ जाना
तुम्हे  दिखाने को  मेरा भी  भिड़ जाना
मेरा प्यार से समझाना तुम्हारा मान जाना...
अच्छा वो तो बिल्कुल याद होगा.....
वो तेज पत्ती वाली  चाय की मिठास
जब हाथ में चाय  और हम तुम पास
चाय पीते पीते  ही  लड़ना अनायास
बेवजह सुनना एक दूजे की बकवास
तुम्हारा  वही  लाल रंग वाला लिबास
मेरा तुम्हारी  तारीफ़ करने का प्रयास
हाँ ये सब ही बनाते थे उस चाय को ख़ास..
अच्छा वो याद दिलाऊं क्या......
चाय के इंतज़ार में  न कटती रातें
चाय के  बहाने  बढ़ती  मुलाकातें
वो चाय की चुस्की और ढेरों बातें
जब चाय में  दोनों बिस्कुट डुबाते
तुम्हारी सुनते  और अपनी बताते
हम आज भी उस दुकान पे हैं जाते
पर तुम साथ नही इसलिये दो चाय नही मंगवाते...
खैर छोड़ो अब क्या जिक्र करना उन बातों का चलो चाय पीते हैं..

Friday, February 23, 2018

मन का पपीहा : रेनू वर्मा

हृदय के  घोड़े पर सवार मनका पपीहा
इक नयी  उड़ान भरने को तैयार है।

कुछ नए अफ़सानेकुछ नयी मंज़िलेंकुछ नए अफ़साने बनाने को तैयार है। हृदय के घोड़े पर  सवार मन का पपीहा,इक नयी  उड़ान भरने को तैयार है। 

एक नयी उम्मीदएक नयी राह,एक नया जहां बनाने को तैयार है। हृदय के  घोड़े पर सवार मन कापपीहाएक नयी  उड़ान भरने को तैयार है।

कुछ नए सवालकुछ नए जवाब,कुछ नए हिसाब लगाने को तैयार है। हृदय के  घोड़े पर सवार मन का पपीहा,इक नयी  उड़ान भरने को तैयार है। 

कुछ खोये हुए एहसास, कुछ मिट चुकी ख्वाहिशों को 
फिर से जगाने को तैयार है। 
हृदय के घोड़े पर सवार मन का पपीहा,
इक नयी  उड़ान भरने को तैयार है।

रेनू वर्मा 

तू मेरी आवाज हैं: मंगल सिंह


तेरी  यादो का यह अजीब  सा सिलसिला हैं ,,
    तेरे पास  न  होने पर भी तेरे  साथ का अहसास  मुझे होता  हैं ,,
इस गुमां  मे रहता  हू अक्सर  मैं, कि तू मेरे साथ हैं हर  पल  मेरी हर राह मे हमराह हैं ....
           मेरी सोच  की मुक्कदश सी तू अजीब  सी दास्तां  हैं ,,
मेरे वजूद  मे तू इस कदर शामिल सा हैं , की हर  पल तेरी आँखो की नमी भी मुझे दिखती हैं ,,
              आज फिर तू मजबूर हैं शायद, की तेरी मजबूरी की दास्तां  यूँ आसमा  ने बयां की हैं ,,
कि तेरे अश्कों की नमी को मुझ तक उसने बारिश की बुंदों में  पहुचा दी हैं ,,
यूँ ही बेवजह  पहली बारिश  का नाम  नहीं होता कुछ तो खास होगा की पहली  बारिश मे हर शख्स अपने वजूद मे झाँकता  हैं ,,
कही  किसी छोर मे छुपाये अपनी असली  ज़िंदगी  को आंकता  हैं ,,
भूल जाता हैं अपनी  सारी हदे वो अक्सर , याद आता हैं वो एक  चेहरा  मयस्सर ,,,
जिसे  उसने कभी पाने की गुजारिश की थी , जिसके  साथ ऐसी बारिस  मे भीगने की ख्वाहिश  की थी ....
मैं खुद को तुझमे यूँ ही देखता हूँ एे हमनशीं  अक्सर , की इस बारिश मे केवल मैं हू तू हैं और खयालो  का कारवां  सा हैं ,,,,
        
             सच तो यह हैं की तू इस तरह जुडा हैं मुझसे ,की अगर मैं  कोई शख्स  हु तो तू शख्सियत  हैं मेरी ,,
तू आरजूँ  हैं मेरी , मेरा जुनून  हैं, तू लब्ज हैं मेरा , मेरा शुकुन हैं ......
तू इश्क हैं मेरा , मेरी हर साँस  हैं  तू पहचान  हैं मेरी  , मेरी आवाज हैं --
हा तू मेरी आवाज हैं -!!2!!""

 मंगल सिंह
           
Address-   * Mangal Singh..
MS/RB-2/E-13/ Railway coloney/ Sec.- 18/ near pushpdham building/ opposite - Cidco vinayak Mandir/ new panvel (east)/ Maharashtra/ pin-410217..

Wednesday, February 21, 2018

अमित मिश्र 'मौन'

नग़मे इश्क़ के कोई गाये तो तेरी याद आये
जिक्र मोहब्बत का जो आये तो तेरी याद आये

यूँ तो हर पेड़ पे डालें हज़ारों है निकली
टूट के कोई पत्ता जो गिर जाये तो तेरी याद आये

कितने फूलों से गुलशन है ये बगिया मेरी
भंवरा इनपे जो कोई मंडराये तो तेरी याद आये

चन्दन सी महक रहे इस बहती पुरवाई में
झोंका हवा का मुझसे टकराये तो तेरी याद आये

शीतल सी धारा बहे अपनी ही मस्ती में यहाँ
मोड़ पे बल खाये जो ये नदिया तो तेरी याद आये

शांत जो ये है सागर कितनी गहराई लिये
शोर करती लहरें जो गोते लगाये तो तेरी याद आये

सुबह का सूरज जो निकला है रौशनी लिये
ये किरणें हर ओर बिखर जाये तो तेरी याद आये

'मौन' बैठा है ये चाँद दामन में सितारे लिये
टूटता कोई तारा जो दिख जाये तो तेरी याद आये

Sunday, January 28, 2018

तुम.... अक्षय मालेगांवकर

आभा गगन की विस्मयकारक 
हुई आज है तेरे कारण
लहराकर तूने केशों को
सीखलाया ऋतु  को है यौवन      ॥१॥

मुख चंद्रमा मुख सौर भी
मुख की कांति  कुछ और ही
मुख भूमंडल के नक्षत्र 
मुख जैसा के ना अन्यत्र      ॥२॥

भूमि स्पर्शित केश तुम्हारे
नयनों मे अंबरी सितारे
दिनकर सम दृष्टि  है तेरी
जुलफे जैसे रात अँधेरी       ॥३॥

चंदन तेरी खुशबू  से महके
देख तूझे मदिरा भी बहके
है पवित्र यूँ गंगा का नीर
नाम तेरा ले चले समीर      ॥४॥

दसो दिशाएँ तूझसे रोशन है
तूझसे ही बढते हर क्षण है
गती को कालगती देती तू
अमर सदा ही लहराती तू    ॥५॥

त्योहारों का गीत तू
हर सुनहरा संगीत तू
हर प्रेमियों की प्रीत तू
है पराजय मे जीत तू      ॥६॥

हँसी है तू रोते नयनों की
है निद्रा तू क्षुधित तनों की
संजीवनी हर एक मर्ज़ में 
धन कूबेर हर एक कर्ज़ में           ॥७॥

भ्रमितों का है तू ही लक्ष्य
है उदाहरण तू विश्वसमक्ष
निःशब्द शब्द है, क्या बात है तू
हर अंतों मे शुरुआत है तू        ॥८॥

हर कोई चाहे वो चाह तू
चलने ना पाएँ वो राह तू
सागर है तू नदियों के लिये
अब तू ही तू सदियों के लिये     ॥९॥

Saturday, January 20, 2018

भिखारी मत कहो ...दीपक सक्सेना

मांगती थी एक रुपया गोद में बालक लिए ,
बालिका थी भाई को स्नेह माता का दिए
चिपकाये माँ जाये को पोंछे आंसू ले चीथड़ा,
प्यार पाने की उम्र में करती कितना जी कड़ा

नाक बहती चाटता बालक स्वाद ले सुड़कता ,
कन्धा गीला कर बहन के गंदे बाल में सुबकता
कितनी हिकारत भरके नज़रें रोज़ उसको झिदकतीं,
भूलकर अपमान फिर भी रोती, मांगती, सिसकती

शिकायत नहीं माँ में कोई ज़हालत विरसे में मिली ,
बमुश्किल तन जो ढक सके लिपटी झिन्गोले में चली
बदरंग कम्बल में लपेटे बच्चे को पुचकारती ,
बाबु, सेठ संबोधनों को चपलता से मनुहारती

अल्लाह का दे वास्ता बजरंगबली की दुहाई ,
भजन शिर्डी साईं के माता की भेंट सुनाई
कभी रेल में बाज़ार में मंदिर सिनेमा हाल में,
शामो सहर करती सफ़र ज़िन्दगी की चाल में

धुप में बरसात में जूझे छिपाए लाल को,
विचलित रहे न आंधी तूफाँ जैसे हराए काल को
गन्दा कटोरा घिस गया फूटी जो किस्मत दिन ब दिन,
हर दिन नए इंसान दिखते अफ़सोस कर पल एक छिन

फ़िल्मी धुन जो नित नयी गाकर सुनाये इतने उमंग से ,
बालक भी नाचे साथ उसके चिपटा रहे जो अंग से
तारतम्य चलता रहा ज़िन्दगी घिसटती रही ,
दास्ताँ भाई बहन की मंथर गति बढती रही

क्या दूं उसे यह सोचकर विचलित हुआ है मन बड़ा,
 बचपन नहीं जो पास उसके क्या दे सकूँगा सोचूं खड़ा
बचपन भुलाकर कितने बच्चे सीधे बड़प्पन में पले
दो पांच रूपया दे हम सभी दाता की श्रेणी में जुड़े


Thursday, January 18, 2018

वो... रेनू वर्मा

वो मेरे घर की गलियां
वो मेरे बाग़ की ठंडी हवा
वो मेरे छत की तारों वाली झिलमिल रातें 
वो मेरे शहर की सडकों पर चलती गाड़ियों का शोर
वो दोस्तों के साथ घूमना
वो माँ के डर से घर जल्दी जाने की ज़िद करना
वो पापा की डांट से बचने के लिए किताब लेके बैठना
वो भाई बहनों के साथ झगड़ना 
वो वक़्त बीत गया
वो समां गुज़र गया 
हम भी आगे बढ़ गए
और ज़माना भी आगे बढ़ गया
अब बस यादें रह गयी हैं
जो भुलाई नहीं जाती हैं। 

Wednesday, January 17, 2018

आयशा: सपना मांगलिक

आयशा
वो कहते हैं कि औरत
कभी हो नहीं सकती बच्ची 
अरे वो तो महज एक 
जमीन है कच्ची 
जिसपे जो चाहे ,जब चाहे
जोते हल,और चुक जाए तो दे दे अन्य किसी मेहनतकश को लीज पर 
या उगाता जाए फसल पर फसल
वो साठ की उम्र में भी पुरुष 
तू छः की नन्ही सी उम्र में भी औरत
तू नहा धोकर भी रस्ते की ख़ाक,नापाक
वो तेरे जिस्म से बुजु कर भी कहलाता है  पाक
वो पढ़ेगा अपने फायदे के लिए आयतें 
मगर तुझको ताउम्र करनी है
इस जल्लाद की इबादतें
उसके लिए बख्शी जाएंगी बहत्तर हूर
छीन लिए जाएंगे तुझसे 
तमाम सपने,हसरतें और नूर 
वो ढांप देगा तेरी पहचान स्याह हिजाब के पीछे
छुपायेगा वहशियत अपनी 
एक  किताब के नीचे
कर तुझे हलाला कभी सुनाकर तलाक
भोगेगें हर तरह से जिस्म तेरा
अल्लाह के ये बन्दे चालाक
बहुत हुआ आयशा तू बढ़ आगे 
रौंद डाल इस गुनहगार मरद जात को
थाम ले हाथ में कलम और किताब को
छोड़ इन झूठे सभी रस्म ओ रिवाज को
ख़ौफ़ज़दा करती जेहादी आवाज को
देख वो आफताब जो तेरा भी है 
तेरी है शब् ,तेरा सवेरा भी है 
नहीं गर्दिश , सितारे  सारे आसमान हैं 
जीती जागती  हाँ तू भी इंसान है
 तुझसे ही जहां यह ,तू ही जहान है 
तेरी भी एक अलग ,खुद की पहचान है। 
तू बेजान नहीं आयशा 
नहीं ,नहीं ,नहीं 
धड़कता है  एक दिल तुझमे भी 
बसती तुझमे भी जान है 
-
सपना मांगलिक

Friday, January 12, 2018

ख्वाहिशें : नेहा शर्मा

 ख्वाहिशें अनंत है
कभी कुछ तो कभी कुछ 
जिंदगी से मांगती 
हर पल मन में भागती
अभी ये चाहिए
अभी वो चाहिए
कभी समझ नही आया 
असल मे क्या चाहिए
संतुष्टि कभी हुई नही
इच्छा पूरी हुई नही
फिर भी ख्वाहिशें
बोझ बनकर कंधो पर लटक रही है
बोझ बनकर भटक रही है
खुद के साये की तरह चिपकी हुई
मन के कोने में दुबकी हुई
बेमतलब सी ख्वाहिशें
बिन बात की ख्वाहिशें 
कभी न पूरी होने वाली ख्वाहिशें
अक्सर कमजोर बना जाती है
फिर भी ख्वाहिशे 
अंत तक पीछे भागती है
ये ख्वाहिशें 
-नेहा शर्मा

Wednesday, January 3, 2018

निर्भीक पथिक : अभिषेक पाराशर

निर्भीक पथिक कंटक पथ पर बढ़कर संत्रस्त नहीं होता है,
क्षुधा भी उसका करती क्या ? जब वह लक्ष्य साध लेता है,
कंटक पथ परवर्तित हो जाता है फूलों की पंखुड़ियों में,
सदा विजय नतमस्तक होती है, उस नर के चरणों में ॥1॥
लक्ष्य वृहद हो या लघु हो,धैर्य कभी नहीं कम होता है,
वाद क्षेत्र में यदि घिर जाने पर,प्रतिवाद कभी नहीं कम होता है,
स्पर्श न करती निराशा उसको,विषम क्षण की घड़ियों में,
सदा विजय नतमस्तक होती है, उस नर के चरणों में ॥2॥
हार विजय में परिवर्तित होकर गले में हार डाल देती है,
बढ़कर वह उस मानव के हित नव पुरुषार्थ भेंट देती है,
पुरुषार्थ की आग उभर आती है, उसकी धमनियों में,
सदा विजय नतमस्तक होती है, उस नर के चरणों में ॥3॥
पथ पर रखता है जब वह पग, लक्ष्य की ही प्रत्याशा में,
लक्ष्य-लक्ष्य ही देखे वह, जब विजय की ही अभिलाषा में,
विजय खोलती अवरुद्ध मार्ग को,जुड़ता इतिहास की कड़ियों में
सदा विजय नतमस्तक होती है, उस नर के चरणों में ॥4॥
अभिषेक पाराशर 

Tuesday, January 2, 2018

नया साल में रखो प्रकृति का ख़्याल : सुशील कुमार वर्मा

ले उड़े इस जहाँ से बेरोजगारी और गरीबी,
एक हवा इस नये साल में!!
हर शिक्षित को रोजगार मिले, 
हो यही मेहरबानी इस नये साल में!!
शिक्षा को हर समय बढ़ावा देना, 
निवेदन है शासन-प्रशासन से इस नये साल में!! 
जल का कभी दुरुपयोग ना करना, 
वरना खतरे की घण्टी बज जाएगी इस नये साल में!! 
वायू को दूषित ना करना,
वरना दिल्ली जैसी फिर घटना होगी इस नये साल में!!
पर्यावरण से खिलवाड़ ना करना मानव, 
गुज़ारिश है मेरी इस नये साल में!! 
प्रकृति से दोस्ती करना, 
तब बनेगी बात इस नये साल में!! 
देश को आतंक से बचाना, 
कोई आतंकी दामन ना छू पाये भारत को इस नये साल में!!
आपका नववर्ष मंगलमय हो, 
विनती है "सुशील" की भगवान से इस नये साल में!!
       सुशील कुमार वर्मा 
     सिन्दुरियां-महराजगंज 
     गोरखपुर विश्वविद्यालय