Friday, July 31, 2009

काश तुम शब्दों से निकलकर

काश कभी तुम
शब्दाडम्बरों से निकल पाते
इसके आकर्षण
इसके छलावे को जान पाते।
तो शाय तुम कभी
यथार्थ अर्थों का मोती पा सकते,
उसको गूँथकर
चिन्तन की एक सुन्दर
माला बना सकते
और उसे स्थितप्रज्ञ की भाँति
किसी के कण्ठ का हार
बना सकते।
काश तुम शब्दों से निकलकर
अर्थ का सीपी पा सकते॥