Thursday, November 30, 2017

ग़ज़ल : तारिक़ अज़ीम 'तनहा'

बड़ा मुश्किल हैं दिल की हर बात कहना,
जैसा रात को दिन, दिन को रात कहना!

हर जख्म दिल का उसका ही नाम लेता हैं,
कहीं वो मिले तो मुझसे मुलाकात कहना!

सच्चाई कड़वी होती हैं, रिश्ते तोड़ देती हैं,
सच जब भी कहना नरमी के साथ कहना।

पूरा दिन लेक्चर करके टूट जाना और फिर,
रात को कलम से कागज़ पर जज़बात कहना!

रोता है 'तनहा' ग़म-ए-जुदाई में इस कदर,
होती हैं आँखों से खून की बरसात कहना।


तारिक़ अज़ीम 'तनहा'

Tuesday, November 21, 2017

माँ पद्मावती-बलिदान की सजीव मूर्ति: अभिषेक पाराशर

तिमिरा रजनी भी जिस माता के शौर्य गीत को गाती है,
जिस वसुधा पर उत्सर्ग किया वह पुण्यभूमि कहलाती है,
गाथा सुनकर उस माता की,मृत उर में रोमाञ्च कूँद जाता है,
चन्द रुपये के यश,लालच में मानव मन इतिहास मोड़ जाता है।।1॥
जिनके त्याग वेग के कारण नभ भी नतमस्तक होता था,
जिनकी नीति के घर्षण से पिशाच खिलजी भी रोया था,
स्पर्श न कर पाया पावन काया को,सुनकर अश्रु टपक जाता है,
चन्द रुपये के यश,लालच में मानव मन इतिहास मोड़ जाता है।।2॥
सहस्त्र अश्व टापों की ध्वनि उस माँ को व्याकुल न कर पाई,
उस कुत्ते खिलजी के सेना मन को चंचल न कर पाई,
समकालीन राजाओं की कायरता से, यह हृदय पिघल जाता है,
चन्द रुपये के यश,लालच में मानव मन इतिहास मोड़ जाता है।।3॥
वीरवती ने अन्तिम क्षण तक, भारत का भगवा लहराया था,
नमन करूँ ‘हे भारत की संस्कृति’, इन्द्र भी पुष्प बरसाया था,
उस माँ के भावों को समझकर, रोम-रोम भड़क जाता है,
चन्द रुपये के यश,लालच में मानव मन इतिहास मोड़ जाता है।।4॥
लंका हो या चित्तौड़ की भूमि, शान बढ़ाती भारत की नारी,
पश्चिम को देती है निदर्शन, सतीत्व से सूर्यास्त कराती नारी,
उन माताओं के तप को स्मरण कर, ‘अभिषेक’ किया जाता है,
चन्द रुपये के यश,लालच में मानव मन इतिहास मोड़ जाता है।।5॥
उपरोक्त कविता का अवतरण मात्र इस प्रार्थना के साथ कि सामयिक रूप से चल रही घटना के सम्बन्ध में,कोई भी अपनी माताओं को जिनका नाम भारतीय इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है, नृत्य करते हुए नहीं देखेगा। अतः इसे पूर्णत: नकार देवें।
धन्यवाद।

अभिषेक पाराशर 
Abhishek Parashar
System Admin O/o Sr Supdt. Of Postoffices

  • Mathura Division, Mathura-281001

Saturday, November 18, 2017

मैं शिक्षक, मैं हूँ....': प्रशांत अग्रवाल

कच्ची मिट्टी जैसा बचपन
भावी भारत का जन-गण-मन
मैं ही इसको गढ़ने वाला
स्वर्णिम सपनों का रखवाला
मुझसे हो सुन्दर निर्माण
मैं शिक्षक, मैं हूँ कुम्हार।
शाला उपवन, बच्चे बीज
भली-भाँति मैं इनको सींच
विस्तृत वृक्ष बनाऊंगा
सुरभित सुमन खिलाऊंगा
चहुँदिशि होगी हरियाली
मैं शिक्षक, मैं हूँ माली।
बच्चे मानो रुई-कपास
कुशल हाथ की इन्हें तलाश
मैं कातूँगा सुन्दर सूत
ताना-बाना भी मजबूत
होंगे उपयोगी घर-घर
मैं शिक्षक, मैं हूँ बुनकर।
बच्चे कोमल तन-मन वाले
कीच में सनकर हँसने वाले
तन-मन स्वच्छ बनाऊंगा
स्वयं स्वच्छ हो जाऊंगा
सबका होगा परिष्कार
मैं शिक्षक, मैं स्वच्छकार।


प्रशांत अग्रवाल
सहायक अध्यापक
प्राथमिक विद्यालय डहिया
विकास क्षेत्र फतेहगंज पश्चिमी
जिला बरेली (उ.प्र.)

अर्धनारीश्वर : लवनीत मिश्र

नर नारी का भेद केवल,
रूप रंग का भेद नहीं,
नर नारी की समानता,
आदर है,कोई खेद नहीं,
हर नर मे निहित है,
नारी सामान संवेदना,
हर नारी मे निहित है,
पुरषारत की चेतना,
अर्धनारीश्वर रूप है,
उदाहरण इस रूप का ,
सम्मान हो एक दूजे का,
आदर हो इस स्वरुप का,
अहंकार के जाल मे,
उलझा यह समाज है,
पौरुष और नारित्वा का,
भेद ही विनाश है,
सृष्टि के  चक्र  का,
यह दो आधार है,
साथ हो तो मंज़िले,
पृथक तो बेकार है,

Loveneet Mishra

Friday, November 17, 2017

मेरी माटी : नीलू मलिक

सबसे सक्षम मेरी माटी 
सुगंध इसकी भीनी-भीनी 
वसंत, ग्रीष्म, वर्षा
हेमंत, शिशिर, शरदऋतु 
छः ऋतुओं की यह है रानी 
आंचल में इसके कश्मीर की घाटी 
श्वेत हिमालय बना श्रृंगार 
नित पहिनाता इस माटी को 
अमूल्य हिम् तुषार हार 
नाना धान्यों से गोद भरी है 
श्रेष्ठ- मौसमी फलों की झरी है 
लहराते सागर इस पर 
बहती नदियाँ कल- कल निर्झर
बने अमूल्य जल- निधि भण्डार 
यह पारस यह हीरा 
यह सोना ये मोती 
खनिज धातु अमूल्य 
इस माटी के अंश हैं सभी 
कई रहस्य गुप्त हैं अभी 
कहने को मटमैला है रंग 
हज़ारो रंग इसीसे उभरे 
असंख्य फसलें हैं निखरे 
मिट्टी का भी क्या स्वाद है 
हर स्वाद की यही बुनियाद है 
फूल- फूल में इसकी खुशबू 
कण्ड- कण्ड में है इसका जादू 
हर प्राणी में तत्व इसीका 
जन्मदात्री सबकी यही है माता 
यही है अंतिम आश्रय- दाता 
यह चाहे तो केहर मचादे
करदे ज़न्नत, हर वीराँ घाटी 
सबसे सक्षम मेरी माटी 

वीर पुरुष की गंभीरता : अभिषेक पाराशर

उत्तुंग शिखर, राहें जटिल, घना अरण्य,
घनघोर विभावरी, सिंह गर्जन और शृगाल ध्वनि।
क्या वीर पुरुष को भीरु बना सकते है?
शूल मार्ग, राहें विशाल, विषम ब्याल
क्रूर अरि, करुण क्रन्दन और नर कपाल,
क्या वीर पुरुष को भीरु बना सकते है?
असहिष्णु भाग्य, जन घृणा,डरपोक मण्डली,
अत्याचारी शासन, मूढ प्रशासन और अनिष्ट मित्र।
क्या वीर पुरुष को भीरु बना सकते है?
निर्लज्ज लोग, विषय भोग, कंचन-कामिनी,
मोह अग्नि, आलस प्रमाद और अवगुण का भय।
क्या वीर पुरुष को भीरु बना सकते है?
कभी नहीं, वह मार्ग चुनेगा अपने जैसा सुअवसर पाकर।
लक्ष्य भेद देगा, छिन्न-भिन्न कर देगा इनको अतुल शक्ति लगाकर।


Abhishek Parashar
System Admin O/o Sr Supdt. Of Postoffices
Mathura Division, Mathura-281001


शब्द : ममता त्रिपाठी

शब्द स्वयं कोई 
अभियान नहीं चलाते 
वे अभियान की
अभिव्यक्ति बनते हैं 
शब्द स्वयं कोई
क्रांति नहीं करते
क्रांति के सारथी बनते हैं ।
शब्द स्वयं कभी
रूप नहीं गढ़ते
वे रूप को वाणी देते हैं। 
शब्द कभी भी
मौन नहीं होते
मौन को भी 
अभिव्यक्त करते हैं ।
पाँव न होते हुये भी 
कंठ से कान तक
यात्रा करते हैं 
फिर उतारते हैं
मस्तिष्क में उस रूप को
जिसकी अभिव्यक्ति के
वे सारथी बने हैं ।
और फिर मस्तिष्क से 
एक रूप को
शब्दाकार दे
चल पड़ते हैं 
कंठ से कान तक
की अपनी अपरिहार्य यात्रा पर।
यही यात्रा उनका
अस्तित्व है
मस्तिष्क में अर्थ का प्रकाश
है अंतिम पड़ाव।

Sunday, November 12, 2017

दृढनिश्चय एवं इच्छाशक्ति की परिभाषा


हर रास्ते की मंज़िल एक नही होती
हर मंज़िल एक रास्ते से हमेशा नही बनती,
कुदरत का भी यही करिश्मा,
हर इंसान एक काम के लिए नही होता |
हर सफलता की वजह एक नही होता
सफलता उन्हें मिलती है
जो सपने देखना पसंद करते है
जिनके सपनो में जान होती है,
सफल होने वाले कोई अलग नही होते |
हौसलों से विजय गाथा परिभाषित होता है,
केवल वादो, इरादो से नहीं..
और ऐसा करने वाले भी एक नही होते.
बुलंदियों को छूने के लिए,
सपनो में जान डालनी पड़ती है |
हर सफल इंसान एक -सा नहीं होता,
और उन्हें बुलंदियों पर पहुँचाने वाले भी एक -सा नही होते ||
अकेले मंजिल पाना कठिन-सा, पर असंभव- सा नहीं,

काटो पर चल कर मुस्कुराना भी एक जिंदगी है |   ---------------

AKHILESH KUMAR BHARTI

श्वेता कश्यप

नरम नरम गुलाबी कपडे़ मे, वो थी लिपटी सिमटी सी,
नन्ही नन्ही आंखो से, उसमें से झॉंका करती थी।
जैसे कह रही हो मॉं, देखो मैं आ गयी,
अपनी भीनी खुशबू से, मेरा जीवन महका गयी।

पायल पहने कदमों से ,जब वो छम छम चलती है,
जैसे जीवन के सितार पर,इक झंकार सी बजती है।

छोटे छोटे शब्दो से, जब वो बातें करती है,
मेरे होठों पर स्ंवय ही ,इक मुस्कान थिरकती है।

कभी दर्द में प्यार से आकर,मेरा सर सहलाती है,
 
और कभी चुपके से आकर,मुझको गले लगाती है।

कभी चूडि़यॉं  बिन्दी पायल, से वो सजती संवरती है,
और कभी मेरे दुप्पटे में से ,ताका झॉंका करती है।

कभी’ बड़ी हॅू’ मॉं मैं कहकर ,खुद सब करना चाहती है,
और कभी ‘ छोटी हॅू ‘ कहकर,अपनी बात मनवाती है।

कभी जिद कभी गुस्सा,कभी फरमाइशों का करना,
जैसे मेरे ही बचपन को ,वो दोहराया करती है‍।

उसके आने से ही मैंने,मॉं का औहदा  पाया है,
धन्यवाद है उस ईश्वर का, जिसने बेटी को बनाया है।।


                                                                                         

subhashini khare

Har gam ko aansuo se dikhaya bahi jata,
Unhe chhupane ka hunar rakhti hai muskurahat.
Har dar ko man me basaaya bahi jata,
Use hosle me badalna janti hai muskurahat.
Khushi ki gehrai to dil hi janta  hai,
Bas kuch had taken Bayaan krti hai muskurahat.
Har dard par marham lgaya nahi jata,
Kuch dard sahna sikhati hai muskurahat.
Har kissa sabko bataaya nahi jata,
Bin bole bolna janti hai muskurahat.
Hal-e-dil har hal me Bayaan krti hai,
Bas jane to koi theek se pdna muskurahat.
Are oo mujhe apna kahne walo 

Agar janpaye ho to btao kya kahti hai meri muskurahat.....

Sandhya

Jeena to us din sikha jb mrne ka ahsaas hua!
Uski ahamiyat tb pta chali, jab khokar fir kabhi bhi na pa sake,
Sahare ki zarurat mahsoos hui, jb akelepan se samna hua,
Tb pta chala ki akele zindagi jeena nahi h itna aasan,
Khud ko bahut buland krna hoga, akele jeene ke liye,
Ek ek saans, ek ek pal keemati h
Na jane kb upar se bulaava aa jae,
Mahsoos kiya mene,
Aisa lga tha mujhe ki mujhe bulaya h upar,
Lekin nahi, mujhe ek mauka mila h

Mujhe to jese nayi zindagi mil gai h,
Aisa lagta h bahut mehnat krke pai h,
Aur ab fir se nahi khona chahti, jitni mehnat krke paya h utna hi khayal bhi rakhna h.

sheetal godiyal


Bndise aam h , mohabbt nakam h.
Wafaye kaash h, umeede rakh h.
Lamha-e-arju h, sikayte saj h.
Jhut jo sch h, sch ek raj h.
Hukumt-e-ishq h, talim-e-taaj h.
Junuy-e-aashiqui h, hsrte gulab h.

Bndise aam h, mohbbt nakam h