Sunday, November 12, 2017

श्वेता कश्यप

नरम नरम गुलाबी कपडे़ मे, वो थी लिपटी सिमटी सी,
नन्ही नन्ही आंखो से, उसमें से झॉंका करती थी।
जैसे कह रही हो मॉं, देखो मैं आ गयी,
अपनी भीनी खुशबू से, मेरा जीवन महका गयी।

पायल पहने कदमों से ,जब वो छम छम चलती है,
जैसे जीवन के सितार पर,इक झंकार सी बजती है।

छोटे छोटे शब्दो से, जब वो बातें करती है,
मेरे होठों पर स्ंवय ही ,इक मुस्कान थिरकती है।

कभी दर्द में प्यार से आकर,मेरा सर सहलाती है,
 
और कभी चुपके से आकर,मुझको गले लगाती है।

कभी चूडि़यॉं  बिन्दी पायल, से वो सजती संवरती है,
और कभी मेरे दुप्पटे में से ,ताका झॉंका करती है।

कभी’ बड़ी हॅू’ मॉं मैं कहकर ,खुद सब करना चाहती है,
और कभी ‘ छोटी हॅू ‘ कहकर,अपनी बात मनवाती है।

कभी जिद कभी गुस्सा,कभी फरमाइशों का करना,
जैसे मेरे ही बचपन को ,वो दोहराया करती है‍।

उसके आने से ही मैंने,मॉं का औहदा  पाया है,
धन्यवाद है उस ईश्वर का, जिसने बेटी को बनाया है।।


                                                                                         

1 comment:

Mamta Tripathi said...

भावसिक्त रचना।सुंदर अभिव्यक्ति।बेटियाँ जीवन की खिलखिलाहट हैं। बेटियाँ हैं तो जीवन में सुख, शांति, स्वास्थ्य, संस्कार, समृद्ध समृद्धि है। बेटियाँ हैं तो वंश की,सृष्टि की अभिवृद्धि है। खूबसूरत रचना खूबसूरत विषय पर...