Monday, May 6, 2019

मेरा आशियाना: उमेश पंसारी


बागों का फूल वो खिलाना
चिड़ियों का वो शोर मचाना
आंगन में तुलसी मैया के
पौधे को जल पान कराना

माँ का वो घर को सजाना
बहना का वो प्यार लुटाना
नन्हें से बच्चों का वो
सुबह शाम ही शोर मचाना

कहानी को दादी से सुनना
रात को मीठे सपने बुनना
सुबह देव को तिलक लगाना
हाथ जोड़कर भोग लगाना

पूजा की वो थाल सजाना
आरती में वो साथ में गाना
पढ़ते पढ़ते खेलों में ही
एक दिन वो अफसर बन जाना

पापा की उस सीख को पाना
माँ के हाथ का खाना खाना
सबके हाथ मिलाकर ही तो
बनता है अपना आशियाना.... |

उमेश पंसारी

 सुभाषमार्ग इंग्लिशपुरा सीहोर, मध्यप्रदेश

माँ : अमरनाथ दक्षिण

तेरी दुआ में मैं हरपल रहा,
तेरी सपनों में मैं हरपल हंसा,
रोता था कभी चोट लग जाने पर,
तू आती थी, चुप कराती थी,
प्यार से मेरे बालों को सहलाती थी।

तू घबराती थी, कि मैं तुमसे
कहीं दुर न चला जाऊं,
अपने आंखों के सामने,
मुझे देखकर मुस्कुराती थी।

तू मेरे लिए हर वो दर्द सहती थी,
जिसको सहने की तू हकदार न थी,
पर फिर भी, उस दर्द से मिले 
आसुओं को छुपाकर मुस्कुराती थी,
क्योंकि मैं खुश रहूं,
इसी में तेरी जिंदगानी थी।

चल पड़ता था कभी किसी गलत राह पर,
तो तू हाथ पकड़कर
मुझे खींच लाती थी,
सही रास्ते पर चलना,
तेरी हर एक बात मुझे सिखलाती थी।

तेरी हर एक डांट,
मेरे लिए एक सिख थी मां,
यह जानकर आज मैं
न जाने कहां खो जाता हूं ,
तेरी उसी डांट को
आज फिर से पाने के लिए,
तरसता हूं, बस तरसता जाता हूं।।

 अमरनाथ दक्षिण
बिलासपुर