तेरी दुआ में मैं हरपल रहा,तेरी सपनों में मैं हरपल हंसा,रोता था कभी चोट लग जाने पर,तू आती थी, चुप कराती थी,प्यार से मेरे बालों को सहलाती थी।तू घबराती थी, कि मैं तुमसेकहीं दुर न चला जाऊं,अपने आंखों के सामने,मुझे देखकर मुस्कुराती थी।तू मेरे लिए हर वो दर्द सहती थी,जिसको सहने की तू हकदार न थी,पर फिर भी, उस दर्द से मिलेआसुओं को छुपाकर मुस्कुराती थी,क्योंकि मैं खुश रहूं,इसी में तेरी जिंदगानी थी।चल पड़ता था कभी किसी गलत राह पर,तो तू हाथ पकड़करमुझे खींच लाती थी,सही रास्ते पर चलना,तेरी हर एक बात मुझे सिखलाती थी।तेरी हर एक डांट,मेरे लिए एक सिख थी मां,यह जानकर आज मैंन जाने कहां खो जाता हूं ,तेरी उसी डांट कोआज फिर से पाने के लिए,तरसता हूं, बस तरसता जाता हूं।।
अमरनाथ दक्षिण
बिलासपुर
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