काश कभी तुम
शब्दाडम्बरों से निकल पाते
इसके आकर्षण
इसके छलावे को जान पाते।
तो शाय तुम कभी
यथार्थ अर्थों का मोती पा सकते,
उसको गूँथकर
चिन्तन की एक सुन्दर
माला बना सकते
और उसे स्थितप्रज्ञ की भाँति
किसी के कण्ठ का हार
बना सकते।
काश तुम शब्दों से निकलकर
अर्थ का सीपी पा सकते॥