रंग-बिरंगे इन्द्रधनुष को लेकर आयी होली है ।
कहीं उड़ रहा अबीर गुलाल कहीं सज रही रोली है ।
निकल पड़ी लेकर पिचकारी अब बच्चों की टोली है ।
नगर, गाँव औ हर नुक्कड़ पर हँसी और ठिठोली है ॥
फागुन की यह देन मनोहर कण्ठ-कण्ठ में फाग सजा है ।
हृदय-हृदय उत्सुक आनन्दित अब ऐसा ऋतुराज सजा है ।
कोपल-कोपल में नव उमंग, मकरन्द औ पराग सजा है ।
महक रही है क्यारी-क्यारी कानन में अनुराग सजा है ।।