इन पुरानी जर्जर इमारतों में कौन रहता होगा
प्यार से डाँटते हुए, "अब सो जाओ" कौन कहता होगा
इन बूढ़ी दीवारों पर बरस स्याही छोड़ गये हैं
नजाने कितने तूफ़ान टकराके मुँह मोड़ गये हैं
बारिशें इन जंगी सलाखों को चूमकर पीती होंगी,
कूछ मासूम हाथों में रुकती होंगी, कुछ थके दिलों में जीती होंगी
इस टूटी दहलीज़ पर कुछ ख्वाहिशों ने दम तोड़ा होगा
उस खिड़की के आगे कुछ ख्वाबों ने ज़मीन को छोड़ा होगा
मौसमों की तरह, कभी शाम तो कभी पहर होगा
इन पुरानी जर्जर इमारतो में किसी का शहर होगा
प्यार से डाँटते हुए, "अब सो जाओ" कौन कहता होगा
इन बूढ़ी दीवारों पर बरस स्याही छोड़ गये हैं
नजाने कितने तूफ़ान टकराके मुँह मोड़ गये हैं
बारिशें इन जंगी सलाखों को चूमकर पीती होंगी,
कूछ मासूम हाथों में रुकती होंगी, कुछ थके दिलों में जीती होंगी
इस टूटी दहलीज़ पर कुछ ख्वाहिशों ने दम तोड़ा होगा
उस खिड़की के आगे कुछ ख्वाबों ने ज़मीन को छोड़ा होगा
मौसमों की तरह, कभी शाम तो कभी पहर होगा
इन पुरानी जर्जर इमारतो में किसी का शहर होगा