मेरी ज़िंदगी
क्या चीज़ है कमाल की,
लहर है मशाल की।
तमन्ना है
न हो सौ साल की
क्योंकि
ये है बड़े बेताल की।
ये ज़िंदगी,
इक मीठा ज़हर है,
टूटा बड़ा कहर है,
हँस-हँस के बिताना है जिसे,
बस ऐसा हीं इक पहर है।
हालांकि,
ये कुछ और नहीं,
बस ख्वाबों का नहर है।
ये ज़िंदगी है,
उलझनों से भरी
और बस कष्टों की लड़ी
निभानी है,
हर रिश्तों की कड़ी
हाय,
ये कैसी विपदा में मैं पड़ी।
ये ज़िंदगी,
भावनाओं का मेल है,
हसरतों की जेल है,
चलती हुई इक रेल है
और किस्मत का खेल है।
ये ज़िंदगी
है अंजान की,
है फिक्र किसे,
दुसरे इंसान की।
आगमन है,
हर रोज़ मेहमान का,
पर सहारा
सिर्फ भगवान का।
मुझे,
तोड़नी हर ज़ंजीर है,
पानी हर मंज़िल है,
है फिक्र नहीं सुर-ताल की
क्योंकि,
मेरी ज़िंदगी है बड़े बेताल की ।।
कल्पना ठाकुर
कल्पना ठाकुर