परिंदा पंख फैलाए आसमान को छू रहा हैं
परिंदो के झुण्ड में मदमस्त हो रहा हैं
उड़ान उसकी ऊंची हैं लेकिन मंज़िल अभी दूर हैं
किसी के साथ का सहारा चाहिए
साहस के लिए उसे अपनों की महफ़िल चाहिए
अहंकार तो चुटकी भर भी नहीं हैं इस परिंदे में
आखिर पानी पीने के लिए उसे ज़मीन पर ही तो आना पड़ता हैं
झाकले अपने अंदर परिंदे, यह दुनिया बड़ी महरूम हैं
सजदे में सिर झुकाये तू हवा से बाते करले
भरोसा रख उस रब पर, तेरी नींद बड़ी मीठी हैं
सुबह की किलकारी में, धूप की छायो में, रात की मस्ती में
तू कर्म किए चले जा
पिंजरे में कैद ये परिंदा अब उड़ान ले रहा हैं