Thursday, August 28, 2008

प्रथम नमन

वन्दन है
अभिनन्दन है
अर्चन है,
उस दिव्य दिया का,
जलता रहता शाम-सुबह जो,
मेरे अंधकार पथ पर,
वन्दन है
अभिनन्दन है
अर्चन है,
उस महासलिल का,
जो मेरे जीवन खेतों ,
को नित-नित सींचा करता है,
वन्दन है
अभिनन्दन है
अर्चन है,
उस महावायु का,
बहता रहता क्षुद्र हृदय में,
जो अविरल प्राणरूप में,
वन्दन है
अभिनन्दन है
अर्चन है,
उस वसुधानी का,
जो अपने उर
पर हम सबको,
सदा धरा करती है,
वन्दन है
अभिनन्दन है
अर्चन है,
उस महागगन का,
जो अपने मानस-विशाल का
परिचय देता जनमानस को,
बार-सहस्त्र वन्दन है
लक्ष-बार अभिनन्दन है
कोटिशः अर्चन है,
उस जीवनदायिनी माँ का,
उस प्राणवाहिनी माँ का,
उस प्रेमसिंचिका माँ का.......
जो मेरे भौतिक शरीर में,
रक्त-रूप बहा करती है,
तमस्-विहीन मार्ग हेतु
जो नित तिल-तिल जला करती है,
जो अपने असीम प्रेमजल से,
मुझको सींचा करती है....................

3 comments:

Mamta Tripathi said...

आपकी यह कविता,
वास्तव में है कविता,
बहाती है जो
उर से अपनें
नवल सृजन की
संभावनाओं की सरिता,
आपकी यह कविता।
नितान्त उपेक्षित पहलू पर
डालती है प्रकाश की एक किरण
उदासी को मिटाकर,
भरती है -
आशादीप का प्रकाश
गहन विभावरी को
मिटाकर,
दिखाती है
नूतन पथ
उन्मुख करती है
जीवन पथ पर
नवल संधान को
वस्तुतः हृदय को जोडती है यह कविता।

दिवाकर मिश्र said...

बधाई हो दूसरा ब्लॉग बनाने के लिए । आशा है कि शीघ्र ही आप अपनी रचनात्मकता से ब्लॉग दर्शकों को नित नूतन परिचित कराते रहेंगे । मेरी बात का यह आशय न लगाना कि मैं कहता हूँ कि रोज एक नई रचना प्रकाशित करो ।

दिवाकर मिश्र said...

कविता पर भी टिप्पणी करती हुई कविता
ज्यों सविता को मार्ग दिखाए अपर सविता
ममता को ममता सिखाने वाली ममता
कविता की टिप्पणी में देती है एक कविता ।