तुम जान सको मेरी बातों को
वो दिन कहाँ कब आयेगा
तुम समझ सको मेरे जज्बातो को
वो दिन कहाँ कब आयेगा
कब आयेगा दिवस सुहाना
जब सीप से मोती निकलेगा
कब आयेगी घड़ी सुहानी
जब पावन दीप जलेगा
जाने कब पावन दीप
हमें प्रकाश से भरेगा।
बस यही सोचता रहता हूँ कि
ऐसा भी दिन आये कभी
कि जान सको तुम मुझको
सारस्वत प्रतिभा को भी
पर आयेगा कब सुयोग यह
यह प्रतीक्षा की बात है
पूरी हो इस जनम में
या और जनम की कोई
जादुई और तिलिस्म भरी
झिलमिलाती बात है ।
न जाने कब कोयल
सावन में गीत गायेगी खुशी से
भर कर कण्ठ में रागिनी नई
पता नही कब मधुर गीत
मेरे प्यासे कर्णपटों को
सुनायेगी. गुनगुनायेगी वह
जाने कब
किस घड़ी
पता नही
हमें कुछ……..
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Sunday, October 26, 2008
Friday, October 17, 2008
वे सोते रहे
कुछ हुआ
उनके घर के पास
पर उन्हें भनक तक न लगी
वे आराम से
मखमली गद्दों पर सोते रहे
और बाहर लोग रोते रहे
पर उन्हें भनक तक न लगी
क्योंकि उन चीखों मे
उनके “अपनों” की चीख न थी
जिससे उनको भनक लगती
उनके घर के पास
पर उन्हें भनक तक न लगी
वे आराम से
मखमली गद्दों पर सोते रहे
और बाहर लोग रोते रहे
पर उन्हें भनक तक न लगी
क्योंकि उन चीखों मे
उनके “अपनों” की चीख न थी
जिससे उनको भनक लगती
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