भीनी फुहारें औ सुगन्धि सोंधी छायी है।
बहु प्रतीक्षोपरान्त वर्षाऋतु आयी है।
मयूरवृंद संग मन-मयूर नाच उठा।
माटी की गन्ध से अम्बर महक उठा॥
घुमड़-घुमड घने घन से घिरा गगन।
लगा अभी प्रात है नहीं हुआ मध्याह्न।
भीगने एक क्षण मन मचल उठा।
माटी की गन्ध से अम्बर महक उठा॥
बहु कर्णप्रिय लगे अम्बर का अनुरणन।
झींगुरों की झंकार औ भ्रमरों का गुञ्जन।
स्वाती की आस में चातक चँहक उठा।
माटी की गन्ध से अम्बर महक उठा॥
चमक उठी बिजली नभ में ज्यों कञ्चन।
आषाढ़ ने भुला दिया जेठ की कटु-तपन।
तरु-तरु, पर्ण-पर्ण मानो पुलक उठा।
माटी की गन्ध से अम्बर महक उठा॥