Friday, June 14, 2013

एक सपना.. मुकेश कुमार मिश्र

 
हरियाली के बीच
प्रथम बार उसे
जब ईंट-पत्थर दिखा।
शनैः-शनैःखड़ी होती
इमारत दिखी
हृदय में विकास की
एक अलख जगी
आगे बढ़ने की
जीवन जीने की,
ललक जगी॥
उसकी आँखों में भी
एक सपना जगा
पर.................
जैसे –जैसे इमारत
ऊपर उठती गयी,
आकाश को छूती गयी,
उसका सपना
तार-तार होता गया।
जो कुछ .....
अबतक उसका था
धरती,
आकाश,
हवा ,पानी
और हरियाली
उस पर से भी
वह अधिकार खोता गया...
मुकेश कुमार मिश्र
जून अंक

1 comment:

Pallavi saxena said...

आज के हालातों का बहुत ही सुंदर एवं सार्थक विवरण किया है आपने सुंदर एवं सार्थक रचना।