Friday, July 19, 2013

सितारों की महफिल................हरप्रीत कौर




सितारों पर चढ़ने की ख़्वाहिश लिए बैठी थी एक बादल पर,
बादल में कितने छिद्र थे पता नहीं था अब तक,
तेज हवा आई सब कुछ ले गई,
ही रहा बादल और ही रही सितारों की महफिल।
महफिल जो मदहोश थी,
कामयाबी की वो डोर थी,
उजियाला और सुहाना समा था,
निराशाओं का तूफान वहाँ थमा था
सितारों की चमक का अन्दाज़ा था मुझे,
पर आँधियों का भवंडर छोड़ता है किसे,
ही सितारे ही चाँदनी,
तन्हाइयों में कोई बात भी कैसे बनती
पर मन नहीं माना,
उसे अपना नहीं बल्कि अपनों के लिए था कुछ कर दिखाना,
आत्मा की एक आवाज़ आई,
उसने फिर सितारों पर चढ़ने की गुम्हार लगाई
रात दिन एक हुए,
भूख प्यास तृप्त हुई,
एक टिमटिमाती रोशनी आई,
और लगा सितारों की महफिल मेरे दिल में उतर आई
जुलाई अंक

हरप्रीत कौर
लुधियाना, पंजाब