मैँ
पण्यसुंदरी!
नर
के उद्विग्न मन की।
यह
सुश्रोणि , समुन्नत उरोज ,
मधुमत्त कटि
.
विभासित
उन स्पर्शोँ से
प्रमत्त
भुजदंडोँ से।
.
मैँ
एक वस्तु ,
यौनिकान्न!
तप्त-तप्त
रुधिर का।
.
अवगुंठित
योषिताभिव्यक्ति
मुखरित
सर्वत्र यह लोकोक्ति
.
"कर अर्पित यौवनोपहार
क्षम्य
नहीँ कौमार्य"|
दिसंबर अंक
कहफ़
रहमानी
मुज़फ़्फ़रपुर(बिहार)
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सुंदर शब्द
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