Saturday, February 22, 2014

मैँ पण्यसुंदरी.............कहफ़ रहमानी


             
मैँ  पण्यसुंदरी!

नर  के  उद्विग्न  मन  की।
यह सुश्रोणि , समुन्नत उरोज , मधुमत्त कटि
.
विभासित  उन  स्पर्शोँ  से
प्रमत्त भुजदंडोँ  से।
.
मैँ   एक   वस्तु ,
यौनिकान्न!
तप्त-तप्त   रुधिर   का।
.
अवगुंठित   योषिताभिव्यक्ति
मुखरित  सर्वत्र   यह   लोकोक्ति
.
"कर  अर्पित  यौवनोपहार
क्षम्य  नहीँ  कौमार्य"|
दिसंबर अंक

                   कहफ़   रहमानी


             मुज़फ़्फ़रपुर(बिहार)

1 comment:

Mamta Tripathi said...

सुंदर शब्द