कभी कभी कुछ गलतियां हमसे हो जाती है
अनजाने ही सही पर हो जाती है
उन गलतियों में हम इतना फस जाते है
की होश आते ही खुद को कहीं गिरा हुआ पाते है।
इतना तो पता है कि
ये ख़ुदा जो भी करता है उसके पीछे कुछ अच्छा छिपा रहता है
अच्छा हो या बुरा हो पर कुछ लिखा रहता है
इसलिए, कभी इन्ही गलतियों के कारण किसी को उठा देता है तो किसी को गिरा देता है।
लेकिन कुछ गलतियां हमसे यूँ हो जाती है
जैसे तूफ़ान आती है सब बर्बाद करके यूँ चली जाती है
लगता है जैसे पहले हम कहाँ थे और अब हम कहाँ हैं
हम दूसरों की क्या कहें
हम अपनी खुद की ही नजरो में खुद को गिरा हुआ पाते है।
कुछ की नजरों में गिरते है
तो कुछ को मायूस करते है
कुछ को दुख होता है
तो कुछ मुख फेर लेते है।
बाद में पछताने से कुछ नहीं होता है
क्योंकि जो होना था वो हो चुका होता है
उन गलतियों के बारे में सोचने में क्या रखा है
जो खोना होता है वो खो चुका होता है
बस एक ही राह बच जाती है
भूल जाओ वो सब, सीख ले लो उनसे
की ऐसी गलती होगी न फिर से
जिससे हम गिर जाए अपनी नजरो में फिर से।
खुद को न इतना मायूस करना
इतना न सोचना की उसी में खोए रहना
क्योंकि अब आगे नही बढ़े तो
उन्हीं ग़लतियों को संवारने में पूरी ज़िंदगी लगा डोज
क्या पता कल कोई मौका फिर से इन्ही गलतियों से न निकल जाए।
बस इतना ध्यान रखना
जो हो गया सो हो गया
वो होगा न फिर से
आखिर गलतियां तो होती ही है इंसानों से
इसलिए खुद को न यूँ कोसो हद से।
अपने कदमो को ऐसे बढ़ा
की मंजिल खुद पास आने को तरसे तेरे
और कामयाबी हाथ मे रही तेरे
तो कोई भी गलतियों को भूल से सोचेगा नहीं तेरे।
इसलिए जो हो गया सो हो गया
ऐसा होगा न फिर से
बढ़ा कदम आगे अपने
पास आ जाएंगे फिर से तेरे अपने और सपने।।
- अनुश्रुति सिंह।
1 comment:
Nice poem
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