आँगन में गौरैया की फुदकन,
उसका मनभावन चञ्चलपन,
छप्पर से तिनको की कतरन,
किरणों का आना वह छन-छन।
कहाँ गयी वह प्यारी फुदकन?
फुद-फुदककर फुर उड़ जाती,
जब भी गरमी उसे सताती,
चूँ-चूँ करके पानी पीती,
वह पल लगता मनभावन।
कहाँ गयी वह प्यारी फुदकन?
जब भी हम उसे सताते,
उसे पकड़ने चुपके जाते,
उड़कर पत्तों में छुप जाती,
रह जाता राह देखता बालमन।
कहाँ गयी वह प्यारी फुदकन?
रोज सुबह हम जब उठते,
दाना छींटकर उसे बुलाते,
पर तब तक वह पास न आती,
जबतक पाती न माँ का आश्वासन।
कहाँ गयी वह प्यारी फुदकन?
दाना चुगकर फुर उड़ जाती,
फिर शिशु को खाना सिखलाती,
चोंच में उसका दाना खिलाना,
लगता था हमें बहुत लुभावन।
कहाँ गयी वह प्यारी फुदकन?
उसके विना वीरान आँगन,
कचोटता है यह सूनापन,
सुबह आँख खोलते ही अब,
नहीं सुनाई पड़ती वह चँहकन, ।
कहाँ गयी वह प्यारी फुदकन?
उसके विना हर सुबह वीरान है,
शोरगुलों के बीच छायी नीरवता,
स्तब्धता और एक खालीपन,
उसकी चूँ-चूँ सुनने तड़प रहा मन,
कहाँ गयी वह प्यारी फुदकन?
वह प्यारी गौरेया, प्यारी फुदकन,
उसकी चँहक से संगीतमय हर मन,
आओ बचायें उसका जीवन,
देकर उसे दाना-पानी और संरक्षण,
ताकि खो न जाये उसका जीवन,
बचायें हम आँगन की प्यारी फुदकन॥
8 comments:
गौरैया दिवस पर सार्थक सन्देश देती सुन्दर रचना
हमारे आँगन में तो आज भी फुदकती है :)
पेड़ों , दाने और पानी का इंतजाम जो है ..
सार्थक सन्देश !
गौरया पर लिखी यह रचना पढ़कर बचपन के दिन याद आगए... बहुत ही अच्छा लिखा है आपने... अच्छा लगा पढ़कर... गौरया को बचाने के प्रयास करने ही चाहिए...
Meaningful !
Very good!Really Nice,
Vivek Jain vivj2000.blogspot.com
बेहतरीन कविता!
Vivek Jain vivj2000.blogspot.com
aap ki kavita bahut achchi hai aap ki aagya ke bina is kavita ko face book me aap ke naam ke post kar raha hu,
सुन्दर और सटीक आंकलन.सार्थक सन्देश देती सुन्दर रचना
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