-->
एक अंकुर ने
गीली मिट्टी के अन्दर से
परिश्रम कर
अपना शीश उठाया है,
संसार की खुशियाँ बटोरने
नन्हा हाथ फैलाया है।
उसकी आहट सुन
वायु ने
प्रकाश ने,
मिट्टी और जल ने
सहयोग के लिये
अपना हाथ बढ़ाया है।
बस उसे चाहिए एक और सहयोग.............
मानवीय सहयोग.....
उगने के लिये
उगकर बढ़ने के लिये
बढ़कर अंकुर से
विशाल वृक्ष बनने के लिये
निर्विघ्न जीवन जीने के लिये
अब देखना है कि............
कौन देगा अभयदान?
No comments:
Post a Comment