Friday, April 26, 2013

अप्रैल अंक: ममता त्रिपाठी की कविता : सम्हल जा रे दुष्ट दुःशासन !


कर तार-तार वसुधा का अञ्चल
जगज्जननी का तिरस्कार किया
शक्तिस्वरूपा साक्षात् शक्ति से
तज मानवता दुर्व्यवहार किया
धात्री धरती है जग को वह
मत भूलो जो उपकार किया
मन्त्रपूत पूजनीया महिला है
पूर्वज ऋषियों ने सत्कार किया
कम्पित धरा करुण क्रन्दन से
आन्दोलित मानस जननी का
सम्हल जा रे दुष्ट दुःशासन !
भोगेगा फल निजकरनी का
मूक अन्ध धृतराष्ट्र बना जो
वो कौरव नाश करायेगा
रुका नहीं अन्याय आज तो
काल रौद्ररूप धर आयेगा..........

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