तेरी हर सजा क्या नाकाफी थी जो अब
ठुकरा दिया मुझको,
मैं तो आशिक था तेरा
- दीवाना बना दिया मुझको,
कभी कर न सका
इज़हार-ऐ-मुहब्बत यही खता थी मेरी,
इतनी सी बात पर तूने ये क्या बना
दिया मुझको।
वो लोग खुश हैं अब बहुत जो ना
चाहते थे हमको,
की अब नहीं लगाते हम - दिल
से किसी को,
कुछ बात थी तुझमे - कि दिल
लगाया था,
वो भी तोड़ कर तूने मिटा दिया
मुझको।
दिसंबर अंक
प्रणव शुक्ला
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वाह
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