Tuesday, December 14, 2010

लय, ताल छन्द हो तुम.............

लय, ताल, छन्द हो तुम,
कविता स्वच्छन्द हो तुम।
समीर मलय-मन्द हो तुम,
जीवन-आनन्द हो तुम।
नील वितान हो तुम,
नूतन विहान हो तुम।
पुहुप-मकरन्द हो तुम,
जीवन-आनन्द हो तुम।
तुम जब हँसती हो,
सरिता बहती है.....
अठखेलियों की नादों की।
सावन की भादों की।
मिट जाती हैं
सारी अनुभूतियाँ
दुःख, चिन्ता
और अवसादों की।।

3 comments:

Sunil Kumar said...

भावनात्मक अभिव्यक्ति

ममता त्रिपाठी said...

मिट जाती हैं
सारी अनुभूतियाँ
दुःख, चिन्ता
और अवसादों की।।

बहुत सुन्दर एवं हृदयस्पर्शी प्रस्तुति है। लय भी मधुर है।

Richa P Madhwani said...

bahut badiya