Sunday, December 12, 2010

एक सपना



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हरियाली के बीच
प्रथम बार उसे
जब ईंट-पत्थर दिखा।
शनैः-शनैःखड़ी होती
इमारत दिखी
हृदय में विकास की
एक अलख जगी
आगे बढ़ने की
जीवन जीने की,
ललक जगी॥
उसकी आँखों में भी
एक सपना जगा
पर.................
जैसे –जैसे इमारत
ऊपर उठती गयी,
आकाश को छूती गयी,
उसका सपना
तार-तार होता गया।
जो कुछ .....
अबतक उसका था
धरती,
आकाश,
हवा ,पानी
और हरियाली
उस पर से भी
वह अधिकार खोता गया।

2 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सटीक है ...शहरों में अब हरियाली कहाँ ?

seema gupta said...

बेहद भावनात्मक अभिव्यक्ति

regards