Thursday, January 27, 2011

कला

संस्कृति की संवाहक
मानवीय एवं रसात्मक
मैं कला हूँ
भारतीय कला
ललित कला
कहीं एक हूँ
तो कहीं अनेक
शास्त्रों में
साहित्य में
वाङ्मय में
श्रुतियों और
स्मृतियों में
मैं चौंसठ रूपों में
व्याप्त हूँ
मैं कला हूँ
भारतीय कला
चित्रकला
ललितकला
और हस्तकला
मेरी वक्रता
आनन्द और आस्वाद में
मुखरित होती है
कैलाश से लेकर
बृहदेश्वर तक
प्रतिबिम्बित होती है।
मैं ही लेखक की लेखनी हूँ
चित्रकार की तूलिका
मूर्तिकार की साधना
और............
नर्तक-गायक की आराधना।

12 comments:

ममता त्रिपाठी said...

कला और कलाकार
सृष्टि और सर्जना

सर्जक एवं संहारक
मानवीयता एवं पशुता
कला तो सबकी तूलिका है
बहु शोभनम्

Arvind Mishra said...

तत त्वम् असि ...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...

डॉ. नागेश पांडेय संजय said...

प्रभावोत्पादक ।

Minakshi Pant said...

कला को खूबसूरती से परिभाषित करती सुन्दर रचना |

कविता रावत said...

लेखक की लेखनी हूँ
चित्रकार की तूलिका
मूर्तिकार की साधना
और............नर्तक-गायक की आराधना।
sundar prabhshali rachna...

कविता रावत said...

लेखक की लेखनी हूँ
चित्रकार की तूलिका
मूर्तिकार की साधना
और............नर्तक-गायक की आराधना।
sundar prabhshali rachna...

कविता रावत said...

लेखक की लेखनी हूँ
चित्रकार की तूलिका
मूर्तिकार की साधना
और............नर्तक-गायक की आराधना।
sundar prabhshali rachna...

Anonymous said...

बहुत सुंदर

Amrita Tanmay said...

अच्छा लिखते हैं आप ..अच्छी लगी आपकी अभिव्यक्ति .. आभार

रंजना said...

वाह...बहुत बहुत सुन्दर...

बहुत सही कहा आपने...

Nishant said...

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