प्रकृति-प्रज्ञा-शिशु मानव।
करता आविष्कार नवल-नव।
दुःसाहस तो इसका देखो,
छीन लिया धरती का कलरव॥
गहन तरु-लता नष्ट-भ्रष्टकर,
वसुधा विपिन-विहीन किया ।
कीट-पतंग औ सरीसृप संग,
खग-मृग-आश्रय छीन लिया॥
सिंह-शावकों का शैशव छीना,
मिलकर खूब शिकार किया।
जंगम-स्थावर प्रकृति का,
हो व्यसन-अन्ध संहार किया॥
लुप्त हो गयीं कई प्रजातियाँ,
कई पर संकट छाया है।
पारितन्त्र को तहस-नहस कर,
आखिर इसने क्या पाया है?
6 comments:
अच्छी प्रस्तुति
bahut shaandar
No words can describe how beautiful it is. It's very nice to read a well drafted Hindi poem.
मूक प्राणियों के प्रति गहरा लगाव अद्भुत-शब्द -चयन द्वारा .......वाह.....
महत्वपूर्ण विषय को कविता के माध्यम से बखुबी उठाया है आपने. बधाई.
शब्द नहीं तारीफ के लिए
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