कवि की यह सृष्टि अलौकिक
यहाँ शशकशृंग भी होता है ।
चकवी के वियोग में चकवा
सदा यहाँ पर रोता है ॥
दूर कहीं गगनाञ्चल में,
आकाशकुसुम भी यही खिलाते,
जब भी कोई बच्चा रोता,
चन्दामामा पास बुलाते।
देखो कवि-कल्पना अलौकिक,
कृत्रिम होकर भी है मौलिक।
ये आग से सिंचन करते,
आकाशमार्ग से प्रवचन करते।
नहीं यहाँ कुछ भी असम्भव,
दरिद्र नारायण, कुबेर का वैभव ॥
काव्यलोक कल्पना से इनकी,
निशिदिन सज्जित होता है ।
निर्धन की कुटिया में भी,
प्रासाद अलंकृत होता है ॥
यहाँ पर कोयल सदा कूजती,
आकाश निहारता चातक है ।
करुणा में भी आनन्द यहाँ,
करुण-रस आह्लादक है ॥
8 comments:
Bahut Sundar!
कवि की सिष्टि सच ही अलौकिक होती है सुन्दर प्रस्तुति
आज 25- 07- 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
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्बहुत सुन्दर भाव संग्रहण्।
कवि की कल्पना में भी यथार्थ होता है ...
सुन्दर कविता !
वाह! बहुत सुन्दर प्रस्तुति है.
आप मेरे ब्लॉग पर आये,इसके लिए बहुत बहुत आभार.समय मिलने पर फिर से आईयेगा.
आपका हार्दिक स्वागत है.
नवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ.
बहुत सुन्दर ,
aap jaise logo ne hi hindi kavita aur sahitya ko jivit rakha hai , aap ko mera salam
अति सुंदर! मन प्रसन्न हो गया
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