वन्दन है
अभिनन्दन है
अर्चन है,
उस दिव्य दिया का,
जलता रहता शाम-सुबह जो,
मेरे अंधकार पथ पर,
वन्दन है
अभिनन्दन है
अर्चन है,
उस महासलिल का,
जो मेरे जीवन खेतों ,
को नित-नित सींचा करता है,
वन्दन है
अभिनन्दन है
अर्चन है,
उस महावायु का,
बहता रहता क्षुद्र हृदय में,
जो अविरल प्राणरूप में,
वन्दन है
अभिनन्दन है
अर्चन है,
उस वसुधानी का,
जो अपने उर
पर हम सबको,
सदा धरा करती है,
वन्दन है
अभिनन्दन है
अर्चन है,
उस महागगन का,
जो अपने मानस-विशाल का
परिचय देता जनमानस को,
बार-सहस्त्र वन्दन है
लक्ष-बार अभिनन्दन है
कोटिशः अर्चन है,
उस जीवनदायिनी माँ का,
उस प्राणवाहिनी माँ का,
उस प्रेमसिंचिका माँ का.......
जो मेरे भौतिक शरीर में,
रक्त-रूप बहा करती है,
तमस्-विहीन मार्ग हेतु
जो नित तिल-तिल जला करती है,
जो अपने असीम प्रेमजल से,
मुझको सींचा करती है....................
1 comment:
bahut sunder .....
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