Monday, December 11, 2017

नया युग रचो मानव : सुशील कुमार वर्मा

क्या है ये खेल नसीब का, 
जिन्दगी कैसे गुजरेगी गरीब का,
चढ़ते हैं जहाँ छप्पन भोग मन्दिर में, 
वहीं चौखट पर गरीब भूख से मर रहा!! 

कैसा है खेल किस्मत का,
जिन्दगी कैसे बीतेगी धनहीन का, 
चढ़ते हैं जहाँ चादर मजार में, 
वहीं मजार पर ठण्ड से वस्त्रहीन मर रहा!!

कैसा है स्वभाव इंसान का, 
मानवता का अपमान किया, 
सांपों ने भी छोड़ दिया डसना, 
जब से इंसान एक दूसरे को डस रहा!! 

कैसा है स्वरुप मानव का, 
श्रेष्ठ बुद्धिजीवी होने का गौरव ह्रास किया,
गिरगिट भी भूल गया रंग बदलना,
इंसान जब से रंग बदलना शुरु किया!! 

कब तक चलती रहेगी ऐसी युग, 
जन मानव ही मानव का साथ नहीं दे रहा, 
बदल क्यों नहीं दे रहा बुरी स्वभाव हे मानव
एक नया युग क्यों नहीं रच रहा!!
         
       सुशील कुमार वर्मा 
      गोरखपुर विश्वविद्यालय गोरखपुर
         सिन्दुरियां महराजगंज

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