Friday, December 29, 2017

हमारा किसान : रत्ना पाण्डेय

कुछ कर रहे हैं ऐश यहाँ बिना मेहनत के ही,
लाखों कमा रहे हैं महफ़िल जमा रहे हैं,
ज़िन्दगी का लुत्फ उठा रहे हैं ।
लेकिन मिट्टी में सोना उगाने वाले,
अपने तन को धूप में झुलसाने वाले,
देश को रोटी खिलाने वाले,
इतनी मेहनत के बावजूद भी कर्जा चुका रहे हैं ,
अपना ख़ून पसीना बहा रहे हैं ।
मिल जायेगा उनका पसीना एक दिन मिट्टी में,
किंतु ख़ून उनका बाकी रहेगा,
उनके अंश के रूप में पलता रहेगा ।
नहीं करेगा वह कभी हिम्मत फिर हल चलाने की,
काँप जायेगा उसका सीना उस हल को उठाने में ।
नहीं भूलेगा वह दर्द जो कभी उसके पिता ने सहा था,
और वह पिता की बांहों के बिना ही पला था ।
देखकर ऐसा भविष्य कौन फिर हल उठायेगा,
कौन अपना पसीना यूं ही बहायेगा ।
धीरे धीरे ये ही मौसम चल पड़ेगा,
किसान का बेटा फिर शहर की ओर निकल पड़ेगा ।
ज़रा सोचो कल्पना करो अपने भविष्य की,
दो वक़्त की रोटी भी तब मुश्किल पड़ेगी,
जब ऐसी हवा चलेगी ।
दे दो सारे हक़ उन्हें अधिकार उन्हें,
ताकि उनका ख़ून पसीना सिर्फ मिट्टी में ना मिले,
बल्कि हरियाली और खुशहाली बन के निकले ।
तभी यह देश खुशहाल होगा,
जब हर किसान यहाँ बराबरी का हकदार होगा ।
जब हर किसान यहाँ बराबरी का हकदार होगा ।

-रत्ना पांडे