ख्वाहिशें अनंत है
कभी कुछ तो कभी कुछ
जिंदगी से मांगती
हर पल मन में भागती
अभी ये चाहिए
अभी वो चाहिए
कभी समझ नही आया
असल मे क्या चाहिए
संतुष्टि कभी हुई नही
इच्छा पूरी हुई नही
फिर भी ख्वाहिशें
बोझ बनकर कंधो पर लटक रही है
बोझ बनकर भटक रही है
खुद के साये की तरह चिपकी हुई
मन के कोने में दुबकी हुई
बेमतलब सी ख्वाहिशें
बिन बात की ख्वाहिशें
कभी न पूरी होने वाली ख्वाहिशें
अक्सर कमजोर बना जाती है
फिर भी ख्वाहिशे
अंत तक पीछे भागती है
ये ख्वाहिशें
-नेहा शर्मा
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