Saturday, February 22, 2014

वही है मेरा हिन्दुस्तां..........राहुल व्यास


जहाँ हर चीज है प्यारी
सभी चाहत के पुजारी
प्यारी जिसकी ज़बां

वही है मेरा हिन्दुस्तां
जहाँ ग़ालिब की ग़ज़ल है

वो प्यारा ताज महल है
प्यार का एक निशां
वही है मेरा हिन्दुस्तां
जहाँ फूलों का बिस्तर है
जहाँ अम्बर की चादर है
नजर तक फैला सागर है
सुहाना हर इक मंजर है
वो झरने और हवाएँ,
सभी मिल जुल कर गायें
प्यार का गीत जहां
वही है मेरा हिन्दुस्तां
जहां सूरज की थाली है

जहां चंदा की प्याली है
फिजा भी क्या दिलवाली है
कभी होली तो दिवाली है
वो बिंदिया चुनरी पायल
वो साडी मेहंदी काजल
रंगीला है समां
वही है मेरा हिन्दुस्तां
कही पे नदियाँ बलखाएं

कहीं पे पंछी इतरायें
बसंती झूले लहराएं
जहां अन्गिन्त हैं भाषाएं
सुबह जैसे ही चमकी
बजी मंदिर में घंटी
और मस्जिद में अजां
वही है मेरा हिन्दुस्तां
कहीं गलियों में भंगड़ा है

कही ठेले में रगडा है
हजारों किस्में आमों की
ये चौसा तो वो लंगडा है
लो फिर स्वतंत्र दिवस आया
तिरंगा सबने लहराया
लेकर फिरे यहाँ-वहां
वहीँ है मेरा हिन्दुस्तां
जनवरी अंक


राहुल व्यास

मैँ पण्यसुंदरी.............कहफ़ रहमानी


             
मैँ  पण्यसुंदरी!

नर  के  उद्विग्न  मन  की।
यह सुश्रोणि , समुन्नत उरोज , मधुमत्त कटि
.
विभासित  उन  स्पर्शोँ  से
प्रमत्त भुजदंडोँ  से।
.
मैँ   एक   वस्तु ,
यौनिकान्न!
तप्त-तप्त   रुधिर   का।
.
अवगुंठित   योषिताभिव्यक्ति
मुखरित  सर्वत्र   यह   लोकोक्ति
.
"कर  अर्पित  यौवनोपहार
क्षम्य  नहीँ  कौमार्य"|
दिसंबर अंक

                   कहफ़   रहमानी


             मुज़फ़्फ़रपुर(बिहार)

प्रणव शुक्ला

तेरी हर सजा क्या नाकाफी थी जो अब ठुकरा दिया मुझको,
मैं तो आशिक  था तेरा   -   दीवाना  बना दिया मुझको,
कभी कर न सका  इज़हार-ऐ-मुहब्बत यही खता थी मेरी,
इतनी सी बात पर तूने ये क्या बना दिया मुझको। 

वो लोग खुश हैं अब बहुत जो ना चाहते थे हमको,
की  अब नहीं लगाते हम - दिल से किसी को,
कुछ बात थी तुझमे - कि  दिल लगाया था
वो भी तोड़ कर तूने मिटा दिया मुझको। 

दिसंबर अंक
प्रणव शुक्ला