Saturday, July 20, 2013

करुण-चेतना................. ममता त्रिपाठी

शीत-शक्ति से सिक्त धरा की
सिहरन का आभास किसे है?
स्वयं बन्द हो पशमीना में
पर-पीड़ा-प्रति अवकाश किसे है?
कौन जानता उस चीरू को?
जिसका केश-वसन तन ढँकता ।
जब आभास नहीं है दिनकर
कब उगता है कब ढलता ।
चीरू के निश्छल नयनों का
कर्मठ तन्तुवाय हस्तों का,
भान किसे है, ज्ञान किसे है?
चन्देरी बुनते हाथों के
करघे पर चलते हाथों के,
परि मान-सम्मान किसे है?
कौन जानता है कितने
कष्टों में वो जीते होंगे ?
कौन जानता है कैसे वे
कलित कसीदा सीते होंगे ?
सौन्दर्य और कष्टों का ऐसा
विलक्षण-संयोग कहाँ होगा ?
चर्वणा करे इस रस का
किसने कष्ट सहा होगा?
वेदना का ज्ञान नहीं तो
संवेदना भला क्या होगी?
उपभोगों से बद्ध हृदय में,
करुण-चेतना क्या होगी ?
 
जुलाई अंक
ममता त्रिपाठी
नई दिल्ली

Friday, July 19, 2013

सितारों की महफिल................हरप्रीत कौर




सितारों पर चढ़ने की ख़्वाहिश लिए बैठी थी एक बादल पर,
बादल में कितने छिद्र थे पता नहीं था अब तक,
तेज हवा आई सब कुछ ले गई,
ही रहा बादल और ही रही सितारों की महफिल।
महफिल जो मदहोश थी,
कामयाबी की वो डोर थी,
उजियाला और सुहाना समा था,
निराशाओं का तूफान वहाँ थमा था
सितारों की चमक का अन्दाज़ा था मुझे,
पर आँधियों का भवंडर छोड़ता है किसे,
ही सितारे ही चाँदनी,
तन्हाइयों में कोई बात भी कैसे बनती
पर मन नहीं माना,
उसे अपना नहीं बल्कि अपनों के लिए था कुछ कर दिखाना,
आत्मा की एक आवाज़ आई,
उसने फिर सितारों पर चढ़ने की गुम्हार लगाई
रात दिन एक हुए,
भूख प्यास तृप्त हुई,
एक टिमटिमाती रोशनी आई,
और लगा सितारों की महफिल मेरे दिल में उतर आई
जुलाई अंक

हरप्रीत कौर
लुधियाना, पंजाब