Saturday, July 20, 2013

करुण-चेतना................. ममता त्रिपाठी

शीत-शक्ति से सिक्त धरा की
सिहरन का आभास किसे है?
स्वयं बन्द हो पशमीना में
पर-पीड़ा-प्रति अवकाश किसे है?
कौन जानता उस चीरू को?
जिसका केश-वसन तन ढँकता ।
जब आभास नहीं है दिनकर
कब उगता है कब ढलता ।
चीरू के निश्छल नयनों का
कर्मठ तन्तुवाय हस्तों का,
भान किसे है, ज्ञान किसे है?
चन्देरी बुनते हाथों के
करघे पर चलते हाथों के,
परि मान-सम्मान किसे है?
कौन जानता है कितने
कष्टों में वो जीते होंगे ?
कौन जानता है कैसे वे
कलित कसीदा सीते होंगे ?
सौन्दर्य और कष्टों का ऐसा
विलक्षण-संयोग कहाँ होगा ?
चर्वणा करे इस रस का
किसने कष्ट सहा होगा?
वेदना का ज्ञान नहीं तो
संवेदना भला क्या होगी?
उपभोगों से बद्ध हृदय में,
करुण-चेतना क्या होगी ?
 
जुलाई अंक
ममता त्रिपाठी
नई दिल्ली