भीनी फुहारें औ सुगन्धि सोंधी छायी है।
बहु प्रतीक्षोपरान्त वर्षाऋतु आयी है।
मयूरवृंद संग मन-मयूर नाच उठा।
माटी की गन्ध से अम्बर महक उठा॥
घुमड़-घुमड घने घन से घिरा गगन।
लगा अभी प्रात है नहीं हुआ मध्याह्न।
भीगने एक क्षण मन मचल उठा।
माटी की गन्ध से अम्बर महक उठा॥
बहु कर्णप्रिय लगे अम्बर का अनुरणन।
झींगुरों की झंकार औ भ्रमरों का गुञ्जन।
स्वाती की आस में चातक चँहक उठा।
माटी की गन्ध से अम्बर महक उठा॥
चमक उठी बिजली नभ में ज्यों कञ्चन।
आषाढ़ ने भुला दिया जेठ की कटु-तपन।
तरु-तरु, पर्ण-पर्ण मानो पुलक उठा।
माटी की गन्ध से अम्बर महक उठा॥
13 comments:
वर्षा एइतु में होने वाले प्राकृतिक परिवर्तन का सटीक चित्रण
हिंदी के महकते हुए शब्द अब कम ही नजर आते हैं.ऋतु-वर्णन में आपका शब्द-चयन प्रशंसनीय है.
वर्षा ऋतु का बहुत सुन्दर शब्द चित्र उकेरा है..भावों और शब्दों का सुन्दर संयोजन..
वर्षा ऋतू का सजीव अंकन करती आपकी यह रचना मन भावन है ....!
बेहद भावपूर्ण, अद्भुत चित्रण ,बधाई
खूबसूरत हिंदी के शब्दों के खूबसूरत प्रयोग से ऋतु वर्णन बेहतरीन.
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच
वर्षा ॠतु एकदम सजीव हो उठी ....... प्रशंसनीय !
सुन्दर वर्षा वर्णन .....
very good keep it up
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its my poem.
Plz give ur precius complements.
raftaar-e-jindagi me mai pichadti
gayi ,
jitna chaha sambhalana ,
utna fisalti gayi !
Aankho ko takalluf he , use
dekhne me.
Phir b use dekhti gayi.
Ajeeb kashmkash he jindgi ki ,
jitna chaha sawarna utna bigadti
gayi.
Raftaar-e-jindagi me mai pichadti
gayi !
Saheliyo k mazako se wakt katata
gaya,
aaj wakt k mazak par me tabah
hoti gayi.
Muskurana aadat thi
lekin wo b shamat ban gayi.
Maa - baba samjhte nahi
ya me samajh na saki ,
me b chahti hu , use ye kah na
saki.
Apne aap me khud ko khojti rahi ,
raftaar-e-jindagi me mai pichadti
gayi.
..,..,,.,.....,
..,............
...,..,....,....
Aage likh na pai,
sirf sochati rahi ,
akele me tanha roti rahi !
Puchne par kaha khush hu,
ye baat aaj tak sochati rahi.
Raftaar-e-jindagi me mai
pichadati rahi !!! —
wah wah kya baat hain
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