Tuesday, April 30, 2013

अप्रैल अंक: ममता त्रिपाठी की कविता : करें हम प्रत्यभिज्ञा


शक्तियाँ असीमित,
बस नेत्र हैं निमीलित,
निज पर विश्वास करें,
जीवन में सुवास भरें,
अन्तर्मन मुखरित हो,
क्लेश सब विगलित हो,
क्लान्ति-श्रान्ति त्यागें हम,
फिर एक बार जागें हम,
गहें पावन शिवाज्ञा
करें हम प्रत्यभिज्ञा।।
मुख न कभी म्लान हो,
शक्ति का संचार हो,
लक्ष्य का संधान हो,
जीवनोत्थान हो,
हो सफल प्रतिज्ञा।
करें हम प्रत्यभिज्ञा॥
गरिमा का घट भरे,
रोर पनघट करे,
बटेर फिर रट करे,
कि एक नया विहान हो,
नीला वितान हो,
हो शिव की अनुज्ञा।
करें हम प्रत्यभिज्ञा॥
गौरेया का कलरव,
गायों की नूपुर रव,
नव उल्लास दे,
वधुओं की रुन्झुन
घर को उजास दे,
जगे हमारी प्रज्ञा।
करें हम प्रत्यभिज्ञा

2 comments:

KAVYA RACHANA said...

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KAVYA RACHANA said...

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