बाद बहुत संघर्षों
के।
सज पाई बगिया
में क्यारी।
माली की इच्छा
फूल हो नर।
पर कली खिल
गई नारी।
माली-मालिन
का खून सूख गया।
दोनों की मति
गई मारी।
दोनों दृण हुए
धीरे धीरे।
और फरमान कर
दिया जारी।
होगा तो नर
फूल ही होगा।
फूल न खिलने
देंगे नारी।
आखिर हिम्मत
आई माली में।
मालिन भी हिम्मत
नहीं हारी।
माली-मालिन
असमंजस में भी।
कहीं बिगड़ न
जाये क्यारी।
इस डर से कली
को तोड़ दिया।
कहीं फूल बने
न नारी।
कली कुचल दी
खुद माली ने ऐसे।
फिर कभी न आई
बारी।
सारी बगिया
फिर से बिगड़ गई।
और सूनी रह
गई क्यारी....
सुधीर बंसल
ई-१५, मानसरोवर कोलोनी
रामघाट रोड, अलीगढ़-२०२००१
अक्टूबर अंक
4 comments:
भावो का सुन्दर समायोजन......
सुन्दर रचना.....
सार्थक भाव लिए.....
अनु
sunder abhivyakti...
अन्तस् के पीड़ा की सुंदर अभिव्यक्ति
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