Thursday, November 14, 2013

सूनी रह गई क्यारी..............सुधीर बंसल

बाद बहुत संघर्षों के।
सज पाई बगिया में क्यारी।
माली की इच्छा फूल हो नर।
पर कली खिल गई नारी।
माली-मालिन का खून सूख गया।
दोनों की मति गई मारी।
दोनों दृण हुए धीरे धीरे।
और फरमान कर दिया जारी।
होगा तो नर फूल ही होगा।
फूल न खिलने देंगे नारी।
आखिर हिम्मत आई माली में।
मालिन भी हिम्मत नहीं हारी।
माली-मालिन असमंजस में भी।
कहीं बिगड़ न जाये क्यारी।
इस डर से कली को तोड़ दिया।
कहीं फूल बने न नारी।
कली कुचल दी खुद माली ने ऐसे।
फिर कभी न आई बारी।
सारी बगिया फिर से बिगड़ गई।

और सूनी रह गई क्यारी....
सुधीर बंसल
-१५, मानसरोवर कोलोनी
रामघाट रोड, अलीगढ़-२०२००१

 अक्टूबर अंक

4 comments:

विभूति" said...

भावो का सुन्दर समायोजन......

ANULATA RAJ NAIR said...

सुन्दर रचना.....
सार्थक भाव लिए.....
अनु

Mukesh said...

sunder abhivyakti...

Mamta Tripathi said...

अन्तस् के पीड़ा की सुंदर अभिव्यक्ति