Tuesday, November 21, 2017

माँ पद्मावती-बलिदान की सजीव मूर्ति: अभिषेक पाराशर

तिमिरा रजनी भी जिस माता के शौर्य गीत को गाती है,
जिस वसुधा पर उत्सर्ग किया वह पुण्यभूमि कहलाती है,
गाथा सुनकर उस माता की,मृत उर में रोमाञ्च कूँद जाता है,
चन्द रुपये के यश,लालच में मानव मन इतिहास मोड़ जाता है।।1॥
जिनके त्याग वेग के कारण नभ भी नतमस्तक होता था,
जिनकी नीति के घर्षण से पिशाच खिलजी भी रोया था,
स्पर्श न कर पाया पावन काया को,सुनकर अश्रु टपक जाता है,
चन्द रुपये के यश,लालच में मानव मन इतिहास मोड़ जाता है।।2॥
सहस्त्र अश्व टापों की ध्वनि उस माँ को व्याकुल न कर पाई,
उस कुत्ते खिलजी के सेना मन को चंचल न कर पाई,
समकालीन राजाओं की कायरता से, यह हृदय पिघल जाता है,
चन्द रुपये के यश,लालच में मानव मन इतिहास मोड़ जाता है।।3॥
वीरवती ने अन्तिम क्षण तक, भारत का भगवा लहराया था,
नमन करूँ ‘हे भारत की संस्कृति’, इन्द्र भी पुष्प बरसाया था,
उस माँ के भावों को समझकर, रोम-रोम भड़क जाता है,
चन्द रुपये के यश,लालच में मानव मन इतिहास मोड़ जाता है।।4॥
लंका हो या चित्तौड़ की भूमि, शान बढ़ाती भारत की नारी,
पश्चिम को देती है निदर्शन, सतीत्व से सूर्यास्त कराती नारी,
उन माताओं के तप को स्मरण कर, ‘अभिषेक’ किया जाता है,
चन्द रुपये के यश,लालच में मानव मन इतिहास मोड़ जाता है।।5॥
उपरोक्त कविता का अवतरण मात्र इस प्रार्थना के साथ कि सामयिक रूप से चल रही घटना के सम्बन्ध में,कोई भी अपनी माताओं को जिनका नाम भारतीय इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है, नृत्य करते हुए नहीं देखेगा। अतः इसे पूर्णत: नकार देवें।
धन्यवाद।

अभिषेक पाराशर 
Abhishek Parashar
System Admin O/o Sr Supdt. Of Postoffices

  • Mathura Division, Mathura-281001

2 comments:

Mamta Tripathi said...

बहुत सुन्दर रचना...

Abhishek Parashar said...

Ji bahin ji dhanyabad.