कच्ची मिट्टी जैसा बचपन
भावी भारत का जन-गण-मन
मैं ही इसको गढ़ने वाला
स्वर्णिम सपनों का रखवाला
मुझसे हो सुन्दर निर्माण
मैं शिक्षक, मैं हूँ कुम्हार।
मैं ही इसको गढ़ने वाला
स्वर्णिम सपनों का रखवाला
मुझसे हो सुन्दर निर्माण
मैं शिक्षक, मैं हूँ कुम्हार।
शाला उपवन, बच्चे बीज
भली-भाँति मैं इनको सींच
विस्तृत वृक्ष बनाऊंगा
सुरभित सुमन खिलाऊंगा
चहुँदिशि होगी हरियाली
मैं शिक्षक, मैं हूँ माली।
भली-भाँति मैं इनको सींच
विस्तृत वृक्ष बनाऊंगा
सुरभित सुमन खिलाऊंगा
चहुँदिशि होगी हरियाली
मैं शिक्षक, मैं हूँ माली।
बच्चे मानो रुई-कपास
कुशल हाथ की इन्हें तलाश
मैं कातूँगा सुन्दर सूत
ताना-बाना भी मजबूत
होंगे उपयोगी घर-घर
मैं शिक्षक, मैं हूँ बुनकर।
कुशल हाथ की इन्हें तलाश
मैं कातूँगा सुन्दर सूत
ताना-बाना भी मजबूत
होंगे उपयोगी घर-घर
मैं शिक्षक, मैं हूँ बुनकर।
बच्चे कोमल तन-मन वाले
कीच में सनकर हँसने वाले
तन-मन स्वच्छ बनाऊंगा
स्वयं स्वच्छ हो जाऊंगा
सबका होगा परिष्कार
मैं शिक्षक, मैं स्वच्छकार।
कीच में सनकर हँसने वाले
तन-मन स्वच्छ बनाऊंगा
स्वयं स्वच्छ हो जाऊंगा
सबका होगा परिष्कार
मैं शिक्षक, मैं स्वच्छकार।
प्रशांत अग्रवाल
सहायक अध्यापक
प्राथमिक विद्यालय डहिया
विकास क्षेत्र फतेहगंज पश्चिमी
जिला बरेली (उ.प्र.)
सहायक अध्यापक
प्राथमिक विद्यालय डहिया
विकास क्षेत्र फतेहगंज पश्चिमी
जिला बरेली (उ.प्र.)
3 comments:
स्वाभाविक रचना। शिक्षक की गरिमा और शिक्षक के व्यक्तित्व का सम्यक् भावपूर्ण निरूपण। साधुवाद
रचना सराहने के लिए धन्यवाद
शिक्षक का सही चित्रण कविता के माध्यम से ।
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