Friday, November 17, 2017

वीर पुरुष की गंभीरता : अभिषेक पाराशर

उत्तुंग शिखर, राहें जटिल, घना अरण्य,
घनघोर विभावरी, सिंह गर्जन और शृगाल ध्वनि।
क्या वीर पुरुष को भीरु बना सकते है?
शूल मार्ग, राहें विशाल, विषम ब्याल
क्रूर अरि, करुण क्रन्दन और नर कपाल,
क्या वीर पुरुष को भीरु बना सकते है?
असहिष्णु भाग्य, जन घृणा,डरपोक मण्डली,
अत्याचारी शासन, मूढ प्रशासन और अनिष्ट मित्र।
क्या वीर पुरुष को भीरु बना सकते है?
निर्लज्ज लोग, विषय भोग, कंचन-कामिनी,
मोह अग्नि, आलस प्रमाद और अवगुण का भय।
क्या वीर पुरुष को भीरु बना सकते है?
कभी नहीं, वह मार्ग चुनेगा अपने जैसा सुअवसर पाकर।
लक्ष्य भेद देगा, छिन्न-भिन्न कर देगा इनको अतुल शक्ति लगाकर।


Abhishek Parashar
System Admin O/o Sr Supdt. Of Postoffices
Mathura Division, Mathura-281001


1 comment:

Mamta Tripathi said...

उत्तम रचना। प्रांजल भाषा