Saturday, December 7, 2013

क्या चारो ओर अंधेरा है ? निरज कुमार सिंह

मन में अंधेरा
तन में अंधेरा
प्यार में अंधेरा
तकरार में अंधेरा
विश्वास में अंधेरा
अंधविश्वास में अंधेरा
अंदर भी अंधेरा
बाहर भी अंधेरा
            क्या कोई उपाय नहीं है ? है
आओ पायें ज्ञान को
खोये हुए विश्वास को
समेटें उन बिखरते रिश्तों को
जिन्हें बनाये बरसों तक
फिर जी लें वो जिंदगी
अहा हँस कर, मुस्कुरा कर
पुरखों की यादों को सजाकर
बड़े-बूढों की पूजा कर
संस्कारों को अपनाकर
क्या अब भी अंधेरा है ?
नवंबर अंक
निरज कुमार सिंह
छपरा, बिहार

4 comments:

कहफ़ रहमानी said...

अतिमनोहारी रचना !

Mamta Tripathi said...

उत्तम

Anonymous said...

निरज कुमार

Anonymous said...

निरज कुमार