Thursday, November 30, 2017

ग़ज़ल : तारिक़ अज़ीम 'तनहा'

बड़ा मुश्किल हैं दिल की हर बात कहना,
जैसा रात को दिन, दिन को रात कहना!

हर जख्म दिल का उसका ही नाम लेता हैं,
कहीं वो मिले तो मुझसे मुलाकात कहना!

सच्चाई कड़वी होती हैं, रिश्ते तोड़ देती हैं,
सच जब भी कहना नरमी के साथ कहना।

पूरा दिन लेक्चर करके टूट जाना और फिर,
रात को कलम से कागज़ पर जज़बात कहना!

रोता है 'तनहा' ग़म-ए-जुदाई में इस कदर,
होती हैं आँखों से खून की बरसात कहना।


तारिक़ अज़ीम 'तनहा'

No comments: