Friday, November 13, 2020

आज का अर्जुन - आयुष शर्मा

 इस नीली नीली धरती में, एक लाल भू का भाग है,

यह पानी सा बहता लहू, लग रही धरा में आग है |


यह कैसा विचित्र द्र्श्य है, भाई का भाई काल है,

समय हुआ ज्वलनशील, लग रही हृदय में आग है |


इसी बीच रणभूमि के, यह कौन योद्धा आया है?

सारथी जिसके स्वयं प्रभु, कहर जिसने बरपाया है |


है कौन यह जो बचा रहा, है अपने भाइयो की साख,

पेड़ो, टहनियों, पत्तों के बीच दिखती जिसे चिड़िया की आँख |


भुजा है जिसके वज्र समान, रौरव है उसका ये क्रोध,

एकाग्रता है परम शस्त्र, ना बाधा है न है अवरोध |


अभिमन्यु जैसा वीर पुत्र, भीम जैसा भीम भाई,

पांडु जैसा महान पिता, कुंती है जिसकी माई |


आंखो में है जिसके अग्नि, रण लड़ना जिसका काम है,

द्रोणाचार्य का परम शिष्य, अर्जुन उसका नाम है |


अर्जुन उसका नाम है, कर्म ही जिसका धर्म है,

जज्बा है सीने में धंसा, अधर्म के लिए ना नर्म है |


है अर्जुन हर एक शख्स वो, जिसको खुद की पहचान है,

फल की चिंता नहीं जिसे, सिर्फ कर्म पर ही ध्यान है |


द्वेष ना कोई रखता है, ना लालच जिसे सुहाता है,

प्रभु के सारथी होने पर भी, धनुष खुद ही उठाता है |


हो सामने अपने मगर, धर्म के लिए रण में जाता है,

सुसज्जित यौवन से भरी, अप्सरा को कहता माता है |



आयुष शर्मा 

है अर्जुन हर एक वीर वो, जो अज्ञातवास भी जाता है,

गलती पर पश्तचाप के लिए, तन को अपने तपाता है |


किरदार अनूठे निभाता है, लेकिन संयम भी रखता है,

उसके धीरज को देख कर, ना कोई उसे परखता है |



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