कवि की यह सृष्टि अलौकिक
यहाँ शशकशृंग भी होता है ।
चकवी के वियोग में चकवा
सदा यहाँ पर रोता है ॥
दूर कहीं गगनाञ्चल में,
आकाशकुसुम भी यही खिलाते,
जब भी कोई बच्चा रोता,
चन्दामामा पास बुलाते।
देखो कवि-कल्पना अलौकिक,
कृत्रिम होकर भी है मौलिक।
ये आग से सिंचन करते,
आकाशमार्ग से प्रवचन करते।
नहीं यहाँ कुछ भी असम्भव,
दरिद्र नारायण, कुबेर का वैभव ॥
काव्यलोक कल्पना से इनकी,
निशिदिन सज्जित होता है ।
निर्धन की कुटिया में भी,
प्रासाद अलंकृत होता है ॥
यहाँ पर कोयल सदा कूजती,
आकाश निहारता चातक है ।
करुणा में भी आनन्द यहाँ,
करुण-रस आह्लादक है ॥