फागुनी बयार एक दस्तक दे जाती है
भूल चुके किस्सों को ताजा कर जाती है,
रेत और माटी सा गीला था वो बचपन
सेमल के फूल और चिलबिल बन जाती है
फागुनी बयार कुछ याद दिला जाती है
चूड़ियों के टुकड़े गोल पत्थर के गिट्टे ,
गुड़िया की चूनर में गोट लगा जाती है...
फागुनी बयार कुछ याद दिला जाती है.
स्लेट - चाक, तख्ती, मिट्टी का बुदका
सेठा और नरकुल की कलम बन जाती है,
फागुनी बयार कुछ याद दिला जाती है
गर्माती धूप में, खेल, हँसी, भाग-दौड़
साखियों से मिलने का उत्सव बन जाती है
फागुनी बयार कुछ याद दिला जाती है
पूजा की थाली में बेलपत्र, बेर और
भोले के भांग की ठंडाई बन जाती है...
फागुनी बयार कुछ याद दिला जाती है
नीम, आम, नींबू के फूलों की खुशबू ले
पेड़ो से टपके, टिकोरे बन जाती है...
फागुनी बयार कुछ याद दिला जाती है
भुने हुए बेसन की सोंधी सी खूशबू है
लड्डू , पुए, बर्फी , गुझिया बन जाती है..
फागुनी बयार कुछ याद दिला जाती है
मंजीरा, झांझ और ढोलक की थाप पर
जोगिरा, कबीर, फाग, बिरहा बन जाती है..
फागुनी बयार कुछ याद दिला जाती है
लाल, बैंजनी, पीले, रंगों को साथ लिए
गाल पर गुलाल, मस्त होली बन जाती है...
फागुनी बयार कुछ याद दिला जाती है
होली की मस्ती में छोटी सी चिंता बन
दसवीं के बोर्ड की परीक्षा बन जाती है...
फागुनी बयार कुछ याद दिला जाती है
चिड़ियों के चहक और कोयल की कूक बन
धूल भरे चैत की, आहट बन जाती है
फागुनी बयार कुछ याद दिला जाती है
शैलजा त्रिपाठी
अप्रैल अंक
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