जीवन है
एक प्रवाह
सूक्ष्म से स्थूल
स्थूल से सूक्ष्म
एक चक्र है
लघु से गुरु
गुरु से लघु
समस्या तभी
आती है
जब हम
अपने गुरुत्व में
लघु को
भूल जाते हैं
स्थूल के महाकाया में
खोकर
सूक्ष्म को
अनदेखा करते हैं।
जब कर्म को
केवल
कर्मेन्द्रियों तक
समेटते हैं
और
ज्ञानेन्द्रियों की
विषयों के प्रति
गति को
समझना नहीं चाहते।
जब केवल
साक्षी के साक्ष्य पर ही
अपराधों को
अपराध समझते हैं
प्रज्ञापराध पर
लम्बी चुप्पी
गहन मौन
साध लेते हैं।
अब बताइये कि
भला कौन
दहन होगा
उस आग में
जिसे अंतस् में
पालकर हम
प्रशांत दिखते हुये
सभ्य बने हुये हैं।
एक दिन
उठेगी ही
वह ज्वाला
जिसकी आज हम
आग लिये बैठे हैं।
#ममतात्रिपाठी
No comments:
Post a Comment