Monday, December 13, 2010

प्रतिस्पर्द्धा


आज के इस युग में
हर तरफ प्रतिस्पर्द्धा है।
कौरव-पाण्डव तो
अतीत की कड़ियाँ हैं
यहाँ घोटालों के कुरुक्षेत्र में,
हर कोई महारथी है
हर कोई योद्धा है॥

3 comments:

अंजना said...

nice

ममता त्रिपाठी said...

हाँ अब तो घोटालों के मैदान में भी प्रतिस्पर्द्धा हो रही है...........................महारथियों में आगे निकलने की होड़ है. बात वही है-"नककटे की नाक कटी अढ़ाई बिता रोज बाढ़ै।"

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सटीक रचना ..