Saturday, April 11, 2020

मूल : ममता त्रिपाठी

सरल नहीं है
मूल को भूलना। 
सरल है यह भ्रम पालना
भूल गये हैं मूल को
पर फुनगी पर चढ़कर भी
पुलई पर खिलकर भी
मूल से आना पड़ता है
मूल तक आना पड़ता है।
मूल पर झड़कर।
मूल ही बन जाना पड़ता है।
पर जीवन को
जीने के लिए
सुख को खोजने
और पालने के लिए
पालना पड़ता है भ्रम
मूल को भूलने का।
उसके अस्तित्वबोध को
नकारने का।
@ममता त्रिपाठी 

1 comment:

Hindi Aur Sahitya said...

अत्यंत सुंदर रचना