माना तुमसे वफ़ा नहीं करते
पर कभी बद्दुआ नहीं करते
मसअला कितना भी पेचीदा हो
दरमियाँ तीसरा नहीं करते
जिनके दिल में ख़ुदा का ड़र बाकी
प्रेमियों को जुदा नहीं करते
गर तुम्हारी है ज़िद न आओगे
जाओ हम भी सदा नहीं करते
बज़्म में बेसबब शरीफ़ों की
तल्ख़ बातें किया नहीं करते
बलजीत सिंह बेनाम
पुरानी कचहरी कॉलोनी, हाँसी
अप्रैल अंक
1 comment:
बहुत उम्दा गज़ल और सभी शेर ...
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